Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्यवहारसूत्र
११. गृहस्थ की इच्छा बिना कुछ भी नहीं लेना या उन्हें अप्रीतिकर हो, ऐसा कुछ भी व्यवहार
नहीं करना ।
१२. मकान देते समय कोई पूछे—'तुम कितने साधु हो, कितना ठहरोगे' ऐसे भावों से पूछने पर नहीं ठहरना ।
१३. अल्प समय भी अग्नि या दीपक जले या उसका प्रकाश आवे वहां नहीं ठहरना । १४. भिक्षु की १२ पडिमा तथा अन्य भद्र - महाभद्र आदि पडिमा नहीं करना ।
१५. गांव में गोचरी के घरों को छह विभाग में विभाजित करना, फिर एक दिन में किसी एक विभाग में ही गोचरी करना, छह दिनों के पूर्व पुनः वहां गोचरी नहीं जाना ।
१६. अन्य कोई भिक्षु गोचरी जाए, उस विभाग में नहीं जाना ।
१७. अतिक्रम आदि दोषों के संकल्पमात्र का भी गुरुचौमासी प्रायश्चित्त लेना ।
१८. किसी को दीक्षा न देना, किन्तु प्रतिबोध दे सकते हैं।
१९. आंख आदि का मैल नहीं निकालना ।
२०. वृद्धावस्था में जंघाबल क्षीण होने पर विहार नहीं करना, किन्तु अन्य सभी जिनकल्प की मर्यादाओं का पालन करना ।
इत्यादि और भी अनेक मर्यादाएं हैं, जिन्हें भाष्यादि से अथवा अभि. राजेन्द्र कोष भाग ४ ‘जिनकल्प' शब्द पृ. १४७३ (११) से जान लेना चाहिए।
अभि. राजेन्द्र कोष में जिनकल्प का अर्थ इस प्रकार किया है
(१) जिनाः गच्छनिर्गतसाधुविशेषाः तेषां कल्पः समाचारः ।
जिनानामिव कल्पो जिनकल्प उग्रविहार विशेष: ॥ - उग्रविहारी गच्छनिर्गत साधु जिनकल्पी कहे जाते हैं और उनकी समाचारी मर्यादाओं को जिनकल्प कहा जाता है। इसलिये ही प्रस्तुत सूत्र में उन्हें सांप काट जाय तो भी चिकित्सा कराने का निषेध है। प्रस्तुत सूत्रविधान के अनुसार स्थविरकल्पी की संयमसाधना शरीरसापेक्ष या शरीरनिरपेक्ष दोनों प्रकार की होती है, किन्तु जिनकल्प- साधना शरीरनिरपेक्ष ही होती है।
सूत्र १-१०
११-१२
पांचवें उद्देशक का सारांश
प्रवर्तिनी दो साध्वियों को साथ लेकर विचरण करे और तीन साध्वियों को साथ लेकर चातुर्मास करे ।
गणावच्छेदिका तीन साध्वियों को साथ लेकर विचरण करे एवं चार साध्वियों को साथ लेकर चातुर्मास करे। अनेक प्रवर्तिनी या गणावच्छेदिका सम्मिलित होवें तो भी उपर्युक्त संख्या के अनुसार ही प्रत्येक को रहना चाहिए।
प्रमुख साध्वी के कालधर्म प्राप्त हो जाने पर शेष साध्वियां अन्य योग्य को प्रमुखा बनाकर विचरण करें। योग्य न हो तो विहार करके शीघ्र अन्य संघाड़े में मिल जावें ।