Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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३९८]
[व्यवहारसूत्र बृहत्कल्प उद्दे. १ में किसी ग्रामादि में ठहरने के लिए भी उन्हें गृहस्वामी आदि की निश्रा में रहने का अर्थात् सुरक्षा सहायता का आश्वासन लेकर ही रहने का विधान किया गया है।
आगमकार की दृष्टि से ६० वर्ष की दीक्षापर्याय के बाद आचार्य का और तीस वर्ष की दीक्षा के बाद उपाध्याय का होना उन साध्वियों के लिए आवश्यक नहीं है।
तीन वर्ष की दीक्षापर्याय वाले भिक्षु की उपाध्याय पद पर नियुक्ति एवं पांच वर्ष की दीक्षापर्याय वाले भिक्षु की आचार्य पद पर नियुक्ति संबंधी विस्तृत वर्णन तीसरे उद्देशक से जानना चाहिए। श्रमण के मृतशरीर को परठने की और उपकरणों को ग्रहण करने की विधि
२०. गामाणुगामंदूइज्जमाणे भिक्खूय आहच्च वीसुंभेज्जा, तंच सरीरगंकेइ साहम्मिए पासेजा, कप्पइसे तं सरीरगं 'मा सामारिय'त्ति कटू एगते अचित्ते बहुफासुए थंडिले पडिलेहित्ता पमन्जित्ता परिद्ववेत्तए।
अस्थि य इत्थ केइ साहम्मियसंतिए उवगरणजाए परिहरणारिहे, कप्पड़ से सागारकडं गहाय दोच्चंपि ओग्गहं अणुन्नवेत्ता परिहारं परिहारित्तए।
२०. ग्रामानुग्राम विहार करता हुआ भिक्षु यदि अकस्मात् मार्ग में ही मृत्यु को प्राप्त हो जाए और उसके शरीर को कोई श्रमण देखे और यह जान ले कि यहाँ कोई गृहस्थ नहीं है तो उस मृत श्रवण के शरीर को एकान्त निर्जीव भूमि में प्रतिलेखन व प्रमार्जन करके परठना कल्पता है।
यदि उस मृत श्रमण के कोई उपकरण उपयोग में लेने योग्य हों तो उन्हें सागारकृत ग्रहण कर पुनः आचार्यादि की आज्ञा लेकर उपयोग में लेना कल्पता है।
विवेचन-बृहत्कल्प उद्देशक ४ में उपाश्रय में कालधर्म को प्राप्त होने वाले साधु को परठने संबंधी विधि कही गई है और प्रस्तुत सूत्र में विहार करते हुए कोई भिक्षु मार्ग में ही कालधर्म को प्राप्त हो जाये तो उसके मृत शरीर को परठने की विधि बताई है।
विहार में कभी अकेला चलता हुआ भिक्षु कालधर्म को प्राप्त हो जाए और उसके मृतशरीर को कोई एक या अनेक साधर्मिक साधु देखें तो उन्हें विधिपूर्वक एकांत में ले जा कर परठ देना चाहिए।
____'मा सागारियं'-भिक्षु यह जान ले कि वहां आस-पास में कोई गृहस्थ नहीं है जो उस शरीर का मृत-संस्कार करे, तब उस स्थिति में साधुओं को उसे उठाकर एकांत अचित्त स्थान में परठ देना चाहिए।
यदि उस मृत भिक्षु के कोई उपकरण उपयोग में आने योग्य हों तो आचार्य की आज्ञा का आगार रखते हुए उन्हें ग्रहण कर सकते हैं। फिर जिन उपकरणों को रखने की आचार्य आज्ञा दें उन्हें रख सकते हैं और उपयोग में ले सकते हैं।
___ यदि कोई एक या अनेक भिक्षु किसी भी कारण से उस कालधर्म प्राप्त भिक्षु के मृतशरीर को मार्ग में यों ही छोड़कर चले जाएं तो वे सभी गुरुचौमासी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं।
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