Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सूत्र १
२-३
४-५
६-७
८-९
१०-११
उपसंहार
सूत्र १
२-३
४-५
६-७
८-९
१०-११
छट्ठे उद्देशक का सारांश
ज्ञातिजनों के घरों में जाने के लिये आचार्यादि की विशिष्ट आज्ञा प्राप्त करनी चाहिए। अगीतार्थ या अबहुश्रुत भिक्षु को अकेले नहीं जाना चाहिए, गीतार्थ भिक्षु के साथ में ही जाना चाहिए। वहां घर में पहुंचने के पूर्व बनी वस्तु ही लेनी चाहिए, किन्तु बाद में निष्पन्न हुई वस्तु नहीं लेनी चाहिए।
आचार्य-उपाध्याय के आचार संबंधी पांच अतिशय (विशेषताएं) होते हैं और गणावच्छेदक के दो अतिशय होते हैं।
अकृतसूत्र (अगीतार्थ) अनेक साधुओं को कहीं निवास करना भी नहीं कल्पता है, किन्तु परिस्थितिवश उपाश्रय में एक-दो रात रह सकते हैं, अधिक रहने पर वे सभी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं ।
[ व्यवहारसूत्र
अनेक वगड़, द्वार या मार्ग वाले उपाश्रय में एकाकी भिक्षु को नहीं रहना चाहिए और एक वगड़, द्वार या मार्ग वाले उपाश्रय में भी उभयकाल धर्मजागरणा करते हुए रहना चाहिए ।
स्त्री के साथ मैथुनसेवन न करते हुए भी हस्तकर्म के परिणामों से और कुशीलसेवन के परिणामों से शुक्रपुद्गलों के निकालने पर भिक्षु को क्रमशः गुरुमासिक या गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है।
अन्य गच्छ से आये हुए क्षत-आचार वाले साधु-साध्वी को पूर्ण आलोचना, प्रायश्चित्त कराने के साथ उपस्थापित किया जा सकता है, उसके साथ आहार या निवास किया जा सकता है और उसके आचार्य, उपाध्याय, गुरु आदि की निश्रा निश्चित्त की जा सकती है।
इस उद्देशक में
ज्ञातकुल में प्रवेश करने का,
आचार्यादि के अतिशयों का,
गीतार्थ अगीतार्थ भिक्षुओं के निवास का, एकलविहारी भिक्षु के निवास का, शुक्रपुद्गल निष्कासन के प्रायश्चित्त का,
क्षताचार वाले आए हुए साधु-साध्वियों को रखने, इत्यादि विषयों का कथन किया गया है।
॥ छट्टा उद्देशक समाप्त ॥