Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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छट्ठा उद्देशक]
[३८३ (१) दूध-दही, घृत्त, मिष्ठान्न, मावा आदि पौष्टिक पदार्थों का सेवन नहीं करना एवं बादाम पिस्ता आदि मेवे के पदार्थों का भी त्याग करना।
कभी अत्यावश्यक हो तो इन पदार्थों को अल्पमात्रा में लेना और उनका अनेक दिनों तक निरंतर सेवन नहीं करना।
(२) एक महीने में कम से कम चार दिन आयंबिल या उपवासादि तपस्या अवश्य करना। (३) सदा ऊनोदरी करना अर्थात् किसी भी समय परिपूर्ण भोजन नहीं करना। (४) शाम के समय आहार नहीं करना या अत्यल्प करना।
(५) स्वास्थ्य अनुकूल हो तो एक बार से अधिक आहार नहीं करना अथवा दो बार से अधिक नहीं करना।
(६) एक बार के आहार में भी द्रव्यों की अल्पतम मर्यादा करना। (७) आहार में मिर्च-मसालों की मात्रा अत्यल्प लेना, अचार, अथाणा आदि का सेवन नहीं
करना।
(८) तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन नहीं करना। (९) चूर्ण या खट्टे पदार्थों का सेवन नहीं करना।
(१०) रासायनिक ओषधियों या ऊष्मावर्धक ओषधियों का सेवन नहीं करना। संभवतः अन्य औषध का सेवन भी नहीं करना।
(११) महीने में कम से कम १०-१५ दिन पोरिसी करना एवं कम से कम १५ दिन रूक्ष आहार या सामान्य आहार करना अर्थात् विगय का त्याग करना।
(१२) खाद्य और पेय पदार्थ अत्यंत उष्ण हों तो शीतल करके खाना या पीना, चाय कॉफी का सेवन नहीं करना।
(१३) स्त्रियों का निकट संपर्क नहीं करना एवं उनके अंगोपांग और रूप को देखने की रुचि नहीं रखना।
(१४) दिन को नहीं सोना। (१५) भोजन के बाद कमर झुकाकर नहीं बैठना और न ही सोना।
(१६) विहार या भिक्षाचरी आदि श्रम अवश्य करना अथवा तपश्चर्या या खड़े रहने की प्रवृत्ति रखना।
(१७) उत्तराध्ययनसूत्र, आचारांगसूत्र, सूयगडांगसूत्र एवं दशवैकालिकसूत्र का स्वाध्याय, वाचना, अनुप्रेक्षा आदि करते रहना।
(१८) नियमित भक्तामरस्त्रोत या प्रभुभक्ति एवं प्राणायाम अवश्य करना। (१९) सोते समय और उठते समय कुछ देर आत्मचिन्तन अवश्य करना। (२०) क्रोध के प्रसंग उपस्थित होने पर मौन रखना, आवेशयुक्त न बोलने का अभ्यास करना। (२१) यथासमय स्वाध्याय, ध्यान और कायोत्सर्ग अवश्य करना।