Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ बृहत्कल्पसूत्र
२. पानी पीने को आने वाले जानवर डरकर बिना पानी पिये ही वापस लौट सकते हैं, उनके पानी पीने में अन्तराय होती है।
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३. इधर-उधर भागने से 'जीवघात' की भी सम्भावना रहती है ।
४. दुष्ट जानवर साधु को मार सकते हैं ।
५. जल में रहे जलचर जीव साधु को देखकर त्रस्त होते हैं ।
६. वे जल में इधर-उधर दौड़ते हैं, जिससे पानी के जीवों की विराधना होती है।
७. जल के किनारे पृथ्वी सचित्त होती है अतः पृथ्वीकाय के जीवों की विराधना होती है। ८. साधु के कच्चा पानी पीने की या ग्रहण करने की लोगों को आशंका होती है । इत्यादि कारणों से सूत्र में जलस्थान के किनारे ठहरने का निषेध किया गया है।
सचित्र उपाश्रय में ठहरने का निषेध
२०.
नो कप्पड़ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा सचित्तकम्मे उवस्सए वत्थए । २१. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा अचित्तकम्मे उवस्सए वत्थए । २०. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को सचित्र उपाश्रय में रहना नहीं कल्पता है ।
२१. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को चित्र - रहित उपाश्रय में रहना कल्पता है ।
विवेचन - जिन उपाश्रयों की भित्तियों पर देव - देवियों, स्त्री-पुरुषों और पशु-पक्षियों के जोड़ों के अनेक प्रकार से क्रीड़ा करते हुए चित्र हों अथवा अन्य भी मनोरंजक चित्र चित्रित हों, वहां साधु या साध्वी को नहीं ठहरना चाहिये, क्योंकि उन्हें देखकर उनके मन में विकारभाव जागृत हो सकता है तथा बारंबार उधर दृष्टि जाने से स्वाध्याय, ध्यान, प्रतिलेखन आदि संयमक्रियाओं में एकाग्रता नहीं रहती है। अतः सचित्र उपाश्रयों में ठहरने का साधु-साध्वियों को निषेध किया गया है।
सागारिक की निश्रा लेने का विधान
२२. नो कप्पइ निग्गंथीणं सागारिय-अनिस्साए वत्थए । २३. कप्पइ निग्गंथीणं सागारिय- निस्साए वत्थए ।
२४. कप्पइ निग्गंथाणं सागारिय- निस्साए वा अनिस्साए वा वत्थए । २२. निर्ग्रन्थियों को सागारिक की अनिश्रा से रहना नहीं कल्पता है।
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२३. निर्ग्रन्थियों को सागारिक की निश्रा से रहना कल्पता है।
२४. निर्ग्रन्थियों को सागारिक की निश्रा या अनिश्रा से रहना कल्पता है ।
विवेचन - जैसे वृक्षादि के आश्रय के बिना लता पवन से प्रेरित होकर कम्पित और अस्थिर
जाती है, उसी प्रकार शय्यातर की निश्रा अर्थात् सुरक्षा का उत्तरदायित्व मिले बिना श्रमणी भी क्षुभित