Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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२४८]
[बृहत्कल्पसूत्र
उपसंहार
इस उद्देशक में
सूत्र १-४,
१३-१४
६-१० ११-१२ १५-३२
मैथुनभाव के प्रायश्चित्त का, क्लेश करके आये भिक्षु के प्रति कर्तव्य का, रात्रिभोजन का विवेक एवं उसके प्रायश्चित्त का, संसक्त आहार के विवेक का, निर्ग्रन्थी को एकाकी न होने का एवं शरीर का व वोसिराने का, आतापना लेने के कल्प्याकल्प्य का और प्रतिज्ञाबद्ध आसन न करने का, अनेक उपकरणों के कल्प्याकल्प्य का, परस्पर मूत्र-उपयोग के कल्प्याकल्प्य का, परिवासित आहार एवं औषध के कल्प्याकल्प्य का, परिहारिक भिक्षु के अतिक्रमण करने का, पौष्टिक आहार इत्यादि विषयों का कथन किया गया है।
३३-४४
४६-४८ ४९
॥पांचवां उद्देशक समाप्त॥