Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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दूसरा उद्देशक]
भावार्थ-एकपाक्षिक दो प्रकार का होता है-१. श्रुत से २. प्रव्रज्या से।
जिसने एक गुरु के पास ही वाचना ग्रहण की हो अथवा जिसका श्रुतज्ञान एवं अर्थज्ञान आचार्यादि के समान हो, उनमें भिन्नता न हो, वह श्रुत से एकपाक्षिक कहा जाता है।
जो एक ही कुल गण एवं संघ में प्रव्रजित होकर स्थिरता से रहा हो अथवा जिसने एक गच्छवर्ती साधुओं के साथ निवास अध्ययनादि किया हो वह प्रव्रज्या से एकपाक्षिक कहा जाता है।
भाष्यकार ने इन दो पदों से चार भंग इस प्रकार किये हैं१. प्रव्रज्या और श्रुत से एकपाक्षिक। २. प्रव्रज्या से एकपाक्षिक, श्रुत से नहीं। ३. श्रुत से एकपाक्षिक किन्तु प्रव्रज्या से नहीं। ४. प्रव्रज्या एवं श्रुत दोनों से एकपाक्षिक नहीं।
इनमें प्रथम भंग वाले को ही पद पर नियुक्त करना चाहिए, अन्य भंग वाला पूर्ण रूप से एकपाक्षिक नहीं होता।
सूत्र में अन्तिम वाक्य से आपवादिक विधान भी किया है कि किसी विशेष परिस्थिति में पूर्ण एकपाक्षिक एवं पदयोग्य भिक्षु न हो तो जैसा गण-प्रमुखों को गण के लिए उचित लगे वैसा कर सकते हैं।
भाष्यकार ने यहां यह स्पष्ट किया है कि आपवादिक स्थिति में भी तृतीय भंगवर्ती को अर्थात् जो श्रुत से सर्वथा एकपाक्षिक हो तो उसे पद पर नियुक्त करना चाहिए। किन्तु दूसरे और चौथे भंगवर्ती को पद पर नियुक्त करने से आचार्य को गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है तथा वह आज्ञा-भंग आदि दोषों को प्राप्त करता है।
अतः जो अल्पश्रुत न हो किन्तु बहुश्रुत हो एवं श्रुत से एकपाक्षिक हो, उसे परिस्थितिवश पद पर नियुक्त किया जा सकता है। भाष्यकार ने गा. ३३३ में अल्पश्रुत को भी एकपाक्षिक न कह कर अनेकपाक्षिक कहा है। श्रुत से एकपाक्षिक न होने के दोष
१. भिन्न वाचना होने से अनेक विषयों में शिष्यों को संतुष्ट नहीं कर सकता है। २. भिन्न प्रकार से प्ररूपणा करने पर गच्छ में विवाद उत्पन्न होता है। ३. भिन्न-भिन्न प्ररूपणाओं के आग्रह से कलह उत्पन्न होकर गच्छ छिन्न-भिन्न हो जाता है।
४. अल्पश्रुत हो तो प्रश्न-प्रतिप्रश्नों का समाधान नहीं कर सकता, जिससे शिष्यों को अन्य गच्छ में जाकर पूछना पड़ता है।
५. अन्य गच्छ वाले अगीतार्थ या गीतार्थ शिष्यों को श्रुत के निमित्त से आकृष्ट कर अपनी निश्रा में कर सकते हैं, जिससे गण में क्षति, अशान्ति एवं अव्यवस्था उत्पन्न हो जाती है।