Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[ व्यवहारसूत्र
उसको उस पद पर स्थापित करने के बाद कोई गीतार्थ साधु कहे कि - 'हे आर्य ! तुम इस पद के अयोग्य हो अतः इस पद को छोड़ दो' (ऐसा कहने पर ) यदि वह उस पद को छोड़ दे तो दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त का पात्र नहीं होता है ।
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साधर्मिक साधु
अनुसार उसे आचार्यादि पद छोड़ने के लिए न कहे तो वे सभी साधर्मिक साधु उक्त कारण से दीक्षाछेद या तप रूप प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं ।
विवेचन — तीसरे उद्देशक में आचार्य-उपाध्याय पद के योग्य भिक्षु के गुणों का विस्तृत कथन किया गया है। यहाँ पर रुग्ण आचार्य - उपाध्याय अपना अन्तिम समय समीप जान कर आचार्यउपाध्याय पद के लिए किसी साधु का नाम निर्देश करें तो उस समय स्थविरों का क्या कर्तव्य है, इसका स्पष्टीकरण किया गया है।
रुग्ण आचार्य ने आचार्य बनाने के लिए जिस के नाम का निर्देश किया है, वह योग्य भी हो सकता है और अयोग्य भी हो सकता है अर्थात् उनका कथन रुग्ण होने के कारण या भाव के कारण संकुचित दृष्टिकोण वाला भी हो सकता है।
अत: उनके कालधर्म प्राप्त हो जाने पर 'आचार्य या उपाध्याय पद किसको देना' - इसके निर्णय की जिम्मेदारी गच्छ के शेष साधुओं की कही गई है। जिसका भाव यह है कि यदि आचार्य निर्दिष्ट भिक्षु तीसरे उद्देशक में कही गई सभी योग्यताओं से युक्त है तो उसे ही पद पर नियुक्त करना चाहिए, दूसरा कोई विकल्प आवश्यक नहीं है।
यदि वह शास्त्रोक्त योग्यता से संपन्न नहीं है और अन्य भिक्षु योग्य है तो आचार्यनिर्दिष्ट भिक्षु को पद देना अनिवार्य न समझ कर उस योग्य भिक्षु को ही पद पर नियुक्त करना चाहिए ।
यदि अन्य कोई भी योग्य नहीं है तो आचार्यनिर्दिष्ट भिक्षु योग्य हो अथवा योग्य न हो, उसे ही आचार्यपद पर नियुक्त करना चाहिए ।
अन्य अनेक भी पद के योग्य हैं और वे आचार्यनिर्दिष्ट भिक्षु से रत्नाधिक भी हैं किन्तु यदि आचार्यनिर्दिष्ट भिक्षु योग्य है तो उसे ही आचार्य बनाना चाहिए।
आचार्यनिर्दिष्ट या अनिर्दिष्ट किसी भी योग्य भिक्षु को अथवा कभी परिस्थितिवश अल्प योग्यता वाले भिक्षु को पद पर नियुक्त करने के बाद यदि यह अनुभव हो कि गच्छ की व्यवस्था अच्छी तरह नहीं चल रही है, साधुओं की संयम समाधि एवं बाह्य वातावरण क्षुब्ध हो रहा है, गच्छ में अन्य योग्य भिक्षु तैयार हो गये हैं तो गच्छ के स्थविर या प्रमुख साधु-साध्वियां आदि मिलकर आचार्य को पद त्यागने के लिये निवेदन करके अन्य योग्य को पद पर नियुक्त कर सकते हैं।
ऐसी स्थिति में यदि वे पद त्यागना न चाहें या अन्य कोई साधु उनका पक्ष लेकर आग्रह करे तो वे सभी प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं।
इस सूत्रोक्त आगम-आज्ञा को भलीभांति समझकर सरलतापूर्वक पद देना, लेना या छोड़ने के