Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौथा उद्देशक]
[३५५ ३०. बहुत से गणावच्छेदक एक साथ विचरते हों तो उन्हें परस्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं कल्पता है। किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर साथ विचरना कल्पता है।
३१. बहुत से आचार्य या उपाध्याय एक साथ विचरते हों तो उन्हें परस्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं कल्पता है। किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर विचरना कल्पता है।
____३२. बहुत से भिक्षु, बहुत से गणावच्छेदक और बहुत से आचार्य या उपाध्याय एक साथ विचरते हों तो उन्हें परस्पर एक दूसरे को समान स्वीकार कर साथ विचरना नहीं कल्पता है। किन्तु रत्नाधिक को अग्रणी स्वीकार कर विचरना कल्पता है।
विवेचन-दो या अनेक भिक्षु यदि एक साथ रहें अथवा एक साथ विचरण करें और वे किसी को बड़ा न माने अर्थात् आज्ञा लेना, वन्दन करना आदि कोई भी विनय एवं समाचारी का व्यवहार न करें तो उनका इस प्रकार साथ रहना उचित नहीं है। किन्तु उन्हें रत्नाधिक साधु की प्रमुखता स्वीकार करके उनके साथ विनय-व्यवहार रखते हुए रहना चाहिए और प्रत्येक कार्य उनकी आज्ञा लेकर ही करना चाहिए।
____ रत्नाधिक के साथ रहते हुए भी उनका विनय एवं आज्ञापालन न करने से ज्ञान-दर्शन-चारित्र की उन्नति नहीं होती है अपितु स्वच्छन्दता की वृद्धि होकर आत्मा का अध:पतन होता है और संयम की विराधना होती है। जनसाधारण को ज्ञात होने पर जिनशासन की हीलना होती है। अतः अवमरानिक (शैक्ष) भिक्षु का यह आवश्यक कर्तव्य है कि वह रत्नाधिक की प्रमुखता स्वीकार करके ही उनके साथ रहे।
उसी प्रकार दो या अनेक आचार्य, उपाध्याय, गणावच्छेदक भी एक साथ रहें या विचरण करें तो दीक्षापर्याय से ज्येष्ठ आचार्य आदि का उचित विनय-व्यवहार करते हुए रह सकते हैं।
यह विधान एक मांडलिक आहार करने वाले साम्भोगिक साधुओं की अपेक्षा से है, ऐसा समझना चाहिये।
___ यदि कभी अन्य साम्भोगिक साधु, आचार्य, उपाध्याय या गणावच्छेदक का किसी ग्रामादि में एक ही उपाश्रय में मिलना हो जाय और कुछ समय साथ रहने का प्रसंग आ जाय तो उचित विनयव्यवहार और प्रेमसम्बन्ध के साथ रहा जा सकता है, किन्तु सूत्रोक्त उपसम्पदा (नेतृत्व) स्वीकार करने का विधान यहां नहीं समझना चाहिए। यदि अन्य साम्भोगिक के साथ विचरण या चातुर्मास करना हो अथवा अध्ययन करना हो तो उनकी भी अल्पकालीन उपसम्पदा (नेतृत्व) स्वीकार करके ही रहना चाहिए।