Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
दूसरा उद्देशक ]
[ ३०३
उसके सदृश गुणसंपन्न एक को उपाध्याय पद पर नियुक्त करना चाहिए। उसके बाद जो शिष्य-संपदा से परिपूर्ण हो एवं आचार्य के लक्षणों से युक्त हो उसे भी आचार्य या उपाध्याय आदि पदों पर नियुक्त करना चाहिए और वैसे लक्षण युक्त न हो तो स्थविर आदि पद से विभूषित करना चाहिए। किंतु जिनके प्रभूत शिष्य न हों, उनको एक मुख्य आचार्य के अनुशासन में ही रहना चाहिए ।
मुख्य आचार्य से जो दीक्षा पर्याय में अधिक हों एवं श्रुतसंपदा से संपन्न भी हों, किंतु आचार्य उपाध्याय पद के योग्य न हों तो उन्हें स्थविर आदि पद से सम्मानित करना चाहिए ।
यदि अन्य भिक्षु आचार्य से अधिक दीक्षा पर्याय वाले न हों या श्रुतसम्पदा वाले न हों तो सभी साधुओं को एक ही आचार्य उपाध्याय के अनुशासन में रहना चाहिए ।
पारिहारिक और अपारिहारिकों के परस्पर आहार-सम्बन्धी व्यवहार
२६. बहवे पारिहारिया बहवे अपारिहारिया इच्छेज्जा एगयओ एगमासं वा, दुमासं वा, तिमासं वा, चाउमासंवा, पंचमासं वा, छम्मासं वा वत्थए, ते अन्नमन्नं संभुंजंति, अन्नमन्नं नो संभुंजंति, मासं ते, तओ पच्छा सव्वे वि एगयओ संभुंजंति ।
२७. परिहारकप्पट्ठियस्स भिक्खुस्स नो कप्पड़ असणं वा जाव साइमं वा दाउ वा अणुप्पदा वा ।
थेरा य णं वज्जा - 'इमं ता अज्जो ! तुमं एएसिं देहि वा अणुप्पदेहि वा । '
एवं से कप्पइ दाउं वा, अणुप्पदाडं वा । कप्प से लेवं अणुजाणावेत्तए,
'अणुजाणह भंते! लेवाए'
एवं से कप्पइ लेवं समासेवित्तए ।
२८. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू सएणं पडिग्गहेणं बहिया अप्पणो वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य णं वएज्जा
'पडिग्गाहेहि अज्जो ! - अहं पि भोक्खामि वा पाहामि वा',
एवं से कप्पड़ पडिग्गाहेत्तए ।
तत्थ से नो कप्पड़ अपरिहारिएणं परिहारियस्स पडिग्गहंसि असणं वा जाव साइमं वा भोत्तए वा पाय वा ।
'कप्पड़ से सयंसि वा पडिग्गहंसि, सयंसि वा पलासगंसि, सयंसि वा कमण्डलंसि, सयंसि वा खुब्भसि सयंसि वा पाणिंसि उद्धट्टु - उद्धट्टु भोत्तए वा पायए वा । एस कप्पो अपरिहारियस्स परिहारियाओ ।
२९. परिहारकप्पट्ठिए भिक्खू थेराणं पडिग्गहेणं बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, थेरा य णं वएज्जा -