Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[बृहत्कल्पसूत्र जिनके सेवन से संयम निस्सार हो जाए अथवा जिनशासन, संघ और धर्म की अवहेलना या निन्दा हो वे सब खाद्यपदार्थ पुलाक-भक्त कहे जाते हैं। भाष्य में विस्तृत अर्थ करते हुए पुलाक-भक्त तीन प्रकार के कहे हैं
१. धान्यपुलाक, २. गन्धपुलाक, ३. रसपुलाक।
१. जिन धान्यों के खाने से शारीरिक सामर्थ्य आदि की वृद्धि न हो, ऐसे सांवा, शालि, बल्ल आदि 'धान्यपुलाक' कहे जाते हैं।
२. लहसुन प्याज आदि तथा लोंग इलायची इत्र आदि जिनकी उत्कट गन्ध हो, वे सब पदार्थ 'गन्धपुलाक' कहे जाते हैं।
३. दूध, इमली का रस, द्राक्षारस आदि अथवा अति सरस, पौष्टिक एवं अनेक रासायनिक औषध-मिश्रित खाद्य पदार्थ 'रसपुलाक' कहे जाते हैं।
इस सूत्र में 'पुलाकभक्त' के ग्रहण किए जाने पर निर्वाह हो सके तो साध्वी को पुनः गोचरी जाने का निषेध किया है। अतः यहां रसपुलाक की अपेक्षा सूत्र का विधान समझना चाहिए। क्योंकि गन्धपुलाक और धान्यपुलाक रूप वैकल्पिक अर्थ में पुनः गोचरी नहीं जाने का सूत्रोक्त विधान तर्कसंगत नहीं है।
रसपुलाक के अति सेवन से अजीर्ण या उन्माद होने की प्रायः सम्भावना रहती है। अतः उस दिन उससे निर्वाह हो सकता हो तो फिर भिक्षा के लिए नहीं जाना चाहिए, जिससे उक्त दोषों की सम्भावना न रहे। यदि वह रस-पुलाकभक्त अत्यल्प मात्रा में हो और उससे निर्वाह न हो सके तो पुनः भिक्षा ग्रहण की जा सकती है।
___ इस सूत्र में निर्ग्रन्थी के लिए ही विधान किया गया है, निर्ग्रन्थ के लिए क्यों नहीं?
___ इसका उत्तर भाष्यकार ने इस प्रकार दिया है-'एसेव गमो नियमा तिविहपुलागम्मि होई समणाणं' जो विधि निर्ग्रन्थी के लिए है, वही निर्ग्रन्थ के लिए भी है।
पांचवें उद्देशक का सारांश सूत्र १-४
देव या देवी स्त्री का या पुरुष का रूप विकुर्वित कर साधु साध्वी का आलिंगन आदि करे, तब वे उसके स्पर्श आदि से मैथुनभाव का अनुभव करें तो उन्हें गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। अन्य गण से कोई भिक्षु आदि क्लेश करके आवे तो उसे समझाकर शान्त करना एवं पांच दिन आदि का दीक्षाछेद प्रायश्चित्त देकर पुनः उसके गण में भेज देना। यदि आहार ग्रहण करने के बाद या खाते समय यह ज्ञात हो जाए कि सूर्यास्त हो गया है या सूर्योदय नहीं हुआ है तो उस आहार को परठ देना चाहिये। यदि खावे तो उसे गुरुचौमासी प्रायश्चित्त आता है। रात्रि के समय मुंह में उद्गाल आ जाए तो उसे नहीं निगलना किन्तु परठ देना चाहिये।