Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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पांचवां उद्देशक] पारिहारिक भिक्षु का दोषसेवन एवं प्रायश्चित्त
४९. परिहारकप्पट्टिए भिक्खू बहिया थेराणं वेयावडियाए गच्छेज्जा, से य आहच्च अइक्कमेज्जा, तंच थेरा जाणिज्जा अप्पणो आगमेणं अन्नेसिंवा अंतिए सोच्चा, तओ पच्छा तस्स अहालहुसए नाम ववहारे पट्टवियव्वे सिया।
४९. परिहारकल्पस्थित भिक्षु यदि स्थविरों की वैयावृत्य के लिए कहीं बाहर जाए और कदाचित् परिहारकल्प में कोई दोष सेवन करले, यह वृत्तान्त स्थविर अपने ज्ञान से या अन्य से सुनकर जान ले तो वैयावृत्य से निवृत्त होने के बाद उसे अत्यल्प प्रस्थापना प्रायश्चित्त देना चाहिये।
विवेचन-इस सूत्र में 'वैयावृत्य' पद उपलक्षण है, अतः अन्य आवश्यक कार्य भी इसमें समाविष्ट कर लिए जाते हैं।
आचार्य या गणप्रमुख आदि परिहारतप वहन करने वाले को वैयावृत्य के लिए या अन्य दर्शन के वादियों के साथ शास्त्रार्थ करने के लिये कहीं अन्यत्र भेजें या वह स्वयं अनिवार्य कारणों से कहीं अन्यत्र जाए और वहां उसके परिहारतप की मर्यादा का अतिक्रमण हो जाय तब उसके अतिक्रमण को आचार्यादि स्वयं अपने ज्ञान-बल से या अन्य किसी के द्वारा जान लें तो उसे अत्यल्प प्रायश्चित्त दें, क्योंकि उसका परिहारतप वैयावृत्य या शास्त्रार्थ आदि विशेष कारणों से खण्डित हुआ है। ऐसे प्रसंगों में आवश्यक लगे तो आचार्य उसका परिहारतप छुड़ाकर भी भेज सकते हैं।
अतः उस अवधि में किया गया अतिक्रमण क्षम्य माना गया है एवं उसका अत्यल्प प्रस्थापना प्रायश्चित्त दिया जाता है। पुलाक-भक्त ग्रहण हो जाने पर गोचरी जाने का विधि-निषेध
५०. निग्गंथीए य गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए अणुपविट्ठाए अन्नयरे पुलागभत्ते पडिग्गाहिए सिया सा य संथरेज्जा, कप्पइ से तद्दिवसं तेणेव भत्तटेणं पज्जोसवेत्तए, नो से कप्पइ दोच्चं पि गाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए पविसित्तए।।
सायनसंथरेज्जा, एवं से कप्पइ दोच्चं पिगाहावइकुलं पिण्डवायपडियाए पविसित्तए।
५०. निर्ग्रन्थी आहार के लिए गृहस्थ के घर में प्रवेश करे और वहां यदि पुलाक-भक्त (अत्यंत सरस आहार) ग्रहण हो जाए और यदि उस गृहीत आहार से निर्वाह हो जाए तो उस दिन उसी आहार से रहे किन्तु दूसरी बार आहार के लिए गृहस्थ के घर में न जावे।
यदि उस गृहीत आहार से निर्वाह न हो सके तो दूसरी बार आहार के लिए जाना कल्पता है।
विवेचन-पुलाक शब्द का सामान्य अर्थ है-'असार पदार्थ', किन्तु यहां कुछ विशेष अर्थ 'इष्ट है।