Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[बृहत्कल्पसूत्र नहीं लेने चाहिए। क्योंकि सावधानी न रहने पर इनकी टक्कर से गिरने की या चोट लगने की सम्भावना रहती है और नुकीले हों तो चुभने की सम्भावना रहती है। सवृंत तुम्ब-पात्र के विधि-निषेध
३९. नो कप्पइ निग्गंथीणं सवेण्टयं लाउयं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा। ४०. कप्पइ निग्गंथाणं सवेण्टयं लाउयं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा। ३९. साध्वियों को सवृन्त अलाबु (तुम्बी) रखना या उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है। ४०. साधुओं को सवृन्त अलाबु रखना या उसका उपयोग करना कल्पता है।
विवेचन-इन सूत्रों में कहा गया है कि साध्वी को अपने पास डंठलयुक्त तुंबी नहीं रखना चाहिए। इसका कारण विषाणयुक्त पीठ-फलक के समान (ब्रह्मचर्य सम्बन्धी) समझ लेना चाहिये। साधु को ऐसा तुम्ब-पात्र रखने में कोई आपत्ति नहीं है। सवंत पात्रकेसरिका के विधि-निषेध
४१. नो कप्पइ निग्गंथीणं सवेण्टयं पायकेसरियं धारित्तए वा परिहरित्तए वा। ४२. कप्पइ निग्गंथाणं सवेण्टयं पायकेसरियं धारित्तए वा परिहरित्तए वा। ४१. साध्वियों को सवृन्त पात्रकेसरिका रखना या उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है। ४२. साधुओं को सवृन्त पात्रकेसरिका रखना या उसका उपयोग करना कल्पता है।
विवेचन-काष्ठ-दण्ड के एक सिरे पर वस्त्र-खण्ड को बांधकर पात्र या तुंबी आदि के भीतरी भाग को पोंछने के या प्रमार्जन करने के उपकरण को 'सवृन्त पात्रकेसरिका' कहते हैं।
ब्रह्मचर्य के बाधक कारणों की अपेक्षा से ही साध्वी को इसके रखने का निषेध किया गया है। गोलाकार दंड के अतिरिक्त अन्य प्रकार की पात्रकेसरिका का उपयोग वह कर सकती है अर्थात् जिस तरह साध्वी दंडरहित प्रमार्जनिका रखती है, वैसे ही वह पात्रकेसरिका भी दण्डरहित रख सकती है। दण्डयुक्त पादपोंछन के विधि-निषेध
४३. नो कप्पइ निग्गंथीणं दारुदण्डयं पायपुंछणं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा। ४४. कप्पइ निग्गंथाणं दारुदण्डयं पायपुंछणं धारेत्तए वा परिहरित्तए वा।
४३. निर्ग्रन्थी को दारुदण्ड वाला (काष्ठ की डंडी वाला) पादपोंछन रखना या उसका उपयोग करना नहीं कल्पता है।
४४. निर्ग्रन्थ को दारुदण्ड वाला 'पादपोंछन' रखना या उसका उपयोग करना कल्पता है।