Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौथा उद्देशक ]
[ २१३
नो से कप्पइ अणापुच्छिता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्न गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
कप्पड़ से आपुच्छिता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पड़ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । तेयसेनो वियरेज्जा, एवंसेनो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए । जत्थुत्तरियं धम्मविणयं लभेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं
विहरित्तए ।
जत्थुत्तरियं धम्मविणयं नो लभेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं संभोगपडियाए उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए ।
२३. भिक्षु यदि स्वगण से निकलकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार स्वीकार करना
चाहे तो
कल्पता है।
आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे विना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं
कल्पता है।
किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछ कर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना
कल्पता है।
यदि वे आज्ञा दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है ।
यदि वे आज्ञा न दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है । यदि वहां संयमधर्म की उन्नति होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं
किन्तु जहां संयमधर्म की उन्नति न होती हो, वहां अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है ।
२४. गणावच्छेदक यदि स्वगण से निकलकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार स्वीकार करना चाहे तो
गणावच्छेदक पद का त्याग किये विना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं
है
कल्पता है ।
कल्पता
कल्पता है ।
किन्तु गणावच्छेदक का पद छोड़कर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना
आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे बिना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं
।
किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना
कल्पता है ।