Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौथा उद्देशक ]
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विराधना भी होती है और नाविक के सहयोग पर निर्भर रहना पड़ता है। नाविक नदी पार कराने के पहिले या पीछे शुल्क मांगे तो देने की समस्या भी उत्पन्न होती है, इत्यादि अनेक दोषों की संभावना रहती है।
यदि विशेष कारण से पार जाने-आने का अवसर आ जाय तो एक मास में एक बार ही पार करना चाहिए, क्योंकि सूत्र में दो या तीन बार नावादि से पार उतरने का स्पष्ट निषेध किया है ।
अन्य विवेचन के लिए निशीथ. उद्दे. १२ सूत्र ४४ का विवेचन देखें ।
कुणाला नगरी और ऐरावती नदी का निर्देश उपलक्षण रूप है, अतः जहां साधुगण मासकल्प या वर्षाकल्प से रह रहे हों और उस नगर के समीप भी कोई ऐसी उथली नदी हो, जिसका कि जल जंघा प्रमाण बहता हो तो तथा उसके जल में एक पैर रखते हुए और एक पैर जल से ऊपर करते हुए चलना सम्भव हो तो साधु अन्य निर्दोष मार्ग के निकट न होने पर जा सकता है।
यतना से नदी पार करने पर कायोत्सर्ग का प्रायश्चित्त करना आवश्यक है एवं जीव-विराधना के कारण निशीथ उ. १२ के अनुसार चातुर्मासिक प्रायश्चित्त भी आता है । घास से ढकी हुई छत वाले उपाश्रय में रहने के विधि-निषेध
३३. से तणेसु वा, तणपुंजेसु वा, पलालेसु वा, पलालपुंजेसु वा, अप्पंडेसु जाव मक्कडासंताणएसु, अहे सवणमायायाए नो कप्पड़ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा, तहप्पगारे उवस्सए हेमंत- गिम्हासु वत्थए ।
३४. से तणेसु वा तणपुंजेसु वा, जाव मक्कडासंताणएसु उप्पिं सवणमायाए, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए हेमंत - गिम्हासु वत्थए ।
३५. से तणेसु वा, तणपुंजेसु वा जाव मक्कडासंताणएसु अहे रयणिमुक्कमउडेसु, नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उंवस्सए वासावासं वत्थए ।
३६. से तणेसु वा, तणपुंजेसु वा जाव मक्कडासंताणएसु उष्पिं रयणिमुक्कमउडेसु, कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा तहप्पगारे उवस्सए वासावासं वत्थए ।
३३. जो उपाश्रय तृण या तृणपुंज, पराल या परालपुंज से बना हो और वह अंडे यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो तथा उस उपाश्रय की छत की ऊंचाई कानों से नीची हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को हेमन्त व ग्रीष्म ऋतु में रहना नहीं कल्पता है।
३४. जो उपाश्रय तृण या तृणपुंज से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो तथा उस उपाश्रय की छत की ऊंचाई कानों से ऊंची हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को हेमन्त तथा ग्रीष्म ऋतु में रहना कल्पता है।
३५. जो उपाश्रय तृण या तृणपुंज से बना हो यावत् मकड़ी के जालों से रहित हो किन्तु उपाश्रय की छत की ऊंचाई खड़े व्यक्ति के सिर से ऊपर उठे सीधे दोनों हाथों जितनी ऊंचाई से नीच हो तो ऐसे उपाश्रय में निर्ग्रन्थ एवं निर्ग्रन्थियों को वर्षावास में रहना नहीं कल्पता है ।