Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[बृहत्कल्पसूत्र परिहारतप एक प्रकार से संघ से बहिष्कृत करने का सूचक प्रायश्चित्त है, फिर भी उसके साथ कैसी सहानुभूति रखी जानी चाहिए, यह इस सूत्र में तथा विवेचन में प्रतिपादन किया गया है।
परिहारिक तप सम्बन्धी अन्य विवेचन निशीथ. उ. ४ तथा उ. २० में भी किया गया है। महानदी पार करने के विधि-निषेध
३२. णो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा इमाओ उद्दिवाओ गणियाओ वियंजियाओ पंच महण्णवाओ महाणईओ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा, तं जहा
१. गंगा, २. जउणा, ३. सरयू, ४. एरावई (कोसिया), ५. मही। ___ अह पुण एवं जाणेज्जा एरावई कुणालाए जत्थ चक्किया एगं पायं जले किच्चा, एगं पायं थले किच्चा, एवं णं कप्पइ अंतोमासस्स दुक्खुत्तो वा, तिक्खुत्ता वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा।
जत्थ एवं नो चक्किया एवं णं नो कप्पइ अंतो मासस्स दुक्खुत्तो वा, तिक्खुत्तो वा उत्तरित्तए वा संतरित्तए वा।
३२. निर्ग्रन्थ और निर्ग्रन्थियों को महानदी के रूप में कही गई, गिनाई गई प्रसिद्ध और बहुत जल वाली ये पांच महानदियां एक मास में दो या तीन बार तैरकर पार करना या नौका से पार करना नहीं कल्पता है। वे ये हैं
१. गंगा, २. जमुना, ३. सरयु, ४. ऐरावती (कोशिक) और ५. मही।
किन्तु यदि जाने कि कुणाला नगरी के समीप जो ऐरावती नदी है वह एक पैर जल में और एक पैर स्थल (आकाश) में रखते हुए पार की जा सकती है तो उसे एक माह में दो या तीन बार उतरना या पार करना कल्पता है।
यदि उक्त प्रकार से पार न की जा सके तो उस नदी को एक मास में दो या तीन बार उतरना या पार करना नहीं कल्पता है।
विवेचन-जिन नदियों में निरन्तर जल बहता रहता है और अगाध जल होता है वे'महानदियां' कही जाती हैं। भारतवर्ष में सूत्रोक्त पांच के अतिरिक्त सिन्धु, ब्रह्मपुत्रा आदि अनेक नदियां हैं, उन सबका महार्णव और महानदी पद से संग्रह कर लिया गया है।
सूत्र में प्रयुक्त 'उत्तरित्तए' पद का अर्थ है-स्वयं जल में प्रवेश करके पार करना तथा 'संतरित्तए' पद का अर्थ है-नाव आदि में बैठकर पार करना।
साधु के स्वयं जल में प्रवेश करके पार करने पर जलकायिक जीवों की विराधना होती ही है और नदी के तल में स्थित कण्टक आदि पैर में लगते हैं। कभी जलप्रवाह के वेग से बह जाने पर आत्म-विराधना भी हो सकती है।
नाव आदि से पार करने पर जल के जीवों की विराधना के साथ-साथ षट्कायिक जीवों की