Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२१४]
[बृहत्कल्पसूत्र यदि वे आज्ञा दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा न दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
यदि वहाँ संयमधर्म की उन्नति होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
किन्तु जहां संयम-धर्म की उन्नति न होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
२५. आचार्य या उपाध्याय यदि स्वगण से निकलकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना चाहे तो
__ आचार्य, उपाध्याय पद का त्याग किये विना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
किन्तु उन्हें अपने पदों का त्याग करके अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता
आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछे विना अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
किन्तु आचार्य यावत् गणावच्छेदक को पूछकर अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है।
यदि वे आज्ञा दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है। यदि वे आज्ञा न दें तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
यदि वहां संयमधर्म की उन्नति होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना कल्पता है।
किन्तु जहां संयमधर्म की उन्नति न होती हो तो अन्यगण के साथ साम्भोगिक व्यवहार करना नहीं कल्पता है।
विवेचन-साधु मण्डली में एक साथ बैठना-उठना, खाना-पीना तथा अन्य दैनिक कर्तव्यों का एक साथ पालन करना 'संभोग' कहलाता है।
समवायांगसूत्र के समवाय १२ में संभोग के बारह भेद बतलाये गये हैं, वे इस प्रकार हैं१. उपधि-वस्त्र-पात्र आदि उपकरणों को परस्पर देना-लेना। २. श्रुत-शास्त्र की वाचना देना-लेना। ३. भक्त-पान-परस्पर आहार-पानी या औषध का लेन-देन करना।
४. अञ्जलिप्रग्रह-संयमपर्याय में ज्येष्ठ साधुओं के पास हाथ जोड़कर खड़े रहना या उनके सामने मिलने पर मस्तक झुका कर हाथ जोड़ना।
५. दान-शिष्य का देना-लेना।