Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौथा उद्देशक]
[२०९ ५.मासकल्प-किसी भी ग्रामादि में एक मास या उससे अधिक इच्छानुसार रहना या कभी भी वापिस वहां आकर ठहरना।
६. चातुर्मासकल्प-इच्छा हो तो चार मास एक जगह ठहरना किन्तु संवत्सरी के बाद कार्तिक सुदी पूनम तक एक जगह ही स्थिर रहना। उसके बाद इच्छा हो तो विहार करना, इच्छा न हो तो न करना। श्रुतग्रहण के लिये अन्यगण में जाने का विधि-निषेध
२०. भिक्खू य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए, नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता
१. आयरियं वा, २. उवज्झायं वा, ३. पवत्तयं वा, ४. थेरं वा, ५. गणिं वा, ६.गणहरं वा, ७. गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
ते य से वियरेन्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
२१. गणावच्छेयए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं उपसंपज्जित्ताणं विहरित्तए
नो से कप्पड़ गणावच्छेयत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपजित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ से गणावच्छेइयत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
नो से कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपन्जित्ताणं विहरित्तए।
कप्पइ से आपुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
ते य से वियरेज्जा, एवं से कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। ते य से नो वियरेज्जा, एवं से नो कप्पइ अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
२२. आयरिय-उवज्झाए य गणाओ अवक्कम्म इच्छेज्जा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए
नो से कप्पइ आयरिय-उवज्झायत्तं अनिक्खिवित्ता अन्नं गणंउवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए। कप्पइ से आयरिय-उवज्झायत्तं निक्खिवित्ता अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।
नो ये कप्पइ अणापुच्छित्ता आयरियं वा जाव गणावच्छेइयं वा अन्नं गणं उवसंपज्जित्ताणं विहरित्तए।