Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१४६]
[बृहत्कल्पसूत्र गोचरी आदि में निमन्त्रित वस्त्र आदि के ग्रहण करने की विधि
३८.निग्गंथं चणंगाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविट्ठ केइ वत्थेणवा, पडिग्गहेण वा, कंबलेण वा, पायपुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पड़ से सागारकडं गहाय आयरियपायमूले ठवेत्ता, दोच्चंपि उग्गहं अणुण्णवित्ता परिहारं परिहरित्तए।
३९. निग्गंथं चणं बहिया वियारभूमिं वा, विहारभूमिं वा, निक्खंतं समाणं केइ वत्थेण वा, पडिग्गहेण वा, कंबलेण वा, पायपुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पड़ से सागारकडं गहाय आयरियपायमूले ठवित्ता दोच्चं पि उग्गहं अणुण्णवित्ता परिहारं परिहरित्तए।
४०. निग्गंथिं च णं गाहावइकुलं पिंडवायपडियाए अणुपविढे केइ वत्थेण वा, पडिग्गहेण वा, कंबलेण वा, पायपुंछणेण वा उवनिमंतेज्जा, कप्पइ से सागारकडं गहाय पवत्तिणीपायमूले ठवित्ता, दोच्चं पि उग्गहं अणुण्णवित्ता परिहारं परिहरित्तए।
४१. निग्गंथिं च णं बहिया वियारभूमिं वा विहारभूमिं वा णिक्खंतिं समाणिं केइ वत्थेण वा, पडिग्गहेण वा, कंबलेण वा, पायपुंछणेण वा उवनिमंतेजा, कप्पइ से सागारकडं गहाय पवित्तिणिपायमूले ठवेत्ता, दोच्चंपि उग्गहमणुण्णवित्ता परिहारं परिहरित्तए।
___३८. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट निर्ग्रन्थ को यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेने के लिए कहे तो उन्हें 'साकारकृत' ग्रहण कर, आचार्य के चरणों में रखकर पुनः उनकी आज्ञा लेकर उसे अपने पास रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है।
___३९. विचारभूमि (मल-मूत्र विसर्जन-स्थान) या विहारभूमि (स्वाध्यायभूमि) के लिए (उपाश्रय से) बाहर निकले हुए निर्ग्रन्थ को यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेने के लिए कहे तो वस्त्रादि को साकारकृत' ग्रहण कर उन्हें आचार्य के चरणों में रखकर पुनः उनकी आज्ञा लेकर उसे अपने पास रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है।
४०. गृहस्थ के घर में आहार के लिए प्रविष्ट निर्ग्रन्थी को यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेने के लिए कहे तो उन्हें 'साकारकृत' ग्रहण कर, प्रवर्तिनी के चरणों में रखकर उनसे पुनः आज्ञा लेकर उसे अपने पास रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है।
४१. विचारभूमि या स्वाध्याय भूमि के लिए (उपाश्रय से) बाहर जाती हुई निर्ग्रन्थी को यदि कोई वस्त्र, पात्र, कम्बल या पादपोंछन लेने के लिए कहे तो उन्हें 'साकारकृत' ग्रहण कर, प्रवर्तिनी के चरणों में रखकर पुनः आज्ञा लेकर उसे अपने पास रखना और उनका उपयोग करना कल्पता है।
विवेचन-यदि आचार्य से गोचरी की अनुज्ञा लेकर साधु भिक्षार्थ किसी गृहस्थ के घर में जावे और गृहस्वामिनी भक्त-पान देकर सूत्रोक्त वस्त्र, पात्रादि लेने के लिए कहे और भिक्षु को उनकी आवश्यकता हो तो यह कहकर लेना चाहिए कि यदि हमारे आचार्य आज्ञा देंगे तो इसे रखेंगे अन्यथा