Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[बृहत्कल्पसूत्र साध्वी को सरोमचर्म ग्रहण करने का जो निषेध किया गया है उसका कारण यह है कि उनको ऐसे चर्म की गवेषणा करना एवं इतनी मर्यादाओं का पालन करना कठिन है तथा सरोमचर्म में पुरुष जैसे स्पर्श का अनुभव होने की सम्भावना से वह उनके ब्रह्मचर्य में भी बाधक हो सकता है।
रोमरहित चर्मखण्ड रखने के अनेक कारण भाष्य में कहे हैं। वे इस प्रकार हैं-संधिवात में अतिशीत काल एवं अति उष्ण काल में न चल सकने पर, दृष्टि मन्द हो जाय या पैरों में छाले पड़ जाएँ इत्यादि कारणों से चर्मखण्ड रखे जा सकते हैं। भाष्य में कृत्स्न अकृत्स्न चर्म के अनेक प्रकार से उनके उपयोग एवं परिस्थितियों का वर्णन किया है। इसकी जानकारी के लिये भाष्य का अध्ययन करना आवश्यक है। साधु-साध्वी द्वारा वस्त्र ग्रहण करने के विधि-निषेध
७. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा-कसिणाई वत्थाई धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा।
८. कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा अकसिणाई वत्थाई धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा।
९. नो कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा-अभिन्नाई वत्थाई धारेत्तए वा, परिहरित्तए वा।
१०. कप्पइ निग्गंथाण वा, निग्गंथीण वा-भिन्नाइं वत्थाइंधारेत्तए वा, परिहरित्तए वा। ७. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को कृत्स्न वस्त्रों का रखना या उपयोग करना नहीं कल्पता है। ८. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को अकृत्स्न वस्त्रों का रखना या उपयोग करना कल्पता है। ९. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को अभिन्न वस्त्रों का रखना या उपयोग करना नहीं कल्पता है। १०. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को भिन्न वस्त्रों का रखना या उपयोग करना कल्पता है।
विवेचन-इन सूत्रों में कृत्स्न-अकृत्स्न एवं अभिन्न-भिन्न दोनों ही पद शब्द की अपेक्षा एकार्थक हैं। इनके पृथक्-पृथक् सूत्र कहने का कारण यह है कि कृत्स्न सूत्रों में वस्त्र के वर्ण एवं मूल्य आदि रूप भावकृत्स्न का वर्णन है एवं अभिन्न सूत्रों में अखण्ड थान या अति लम्बे-चौड़े वस्त्र रूप द्रव्य-कृत्स्न का कथन है।
भाष्यकार ने इस कृत्स्न अर्थात् अखण्ड वस्त्र की विस्तृत व्याख्या करते हुए कहा है कि कृत्स्न वस्त्र द्रव्य, क्षेत्र, काल और भाव के भेद से चार प्रकार का होता है। उनमें से द्रव्य कृत्स्न के भी दो भेद हैं-सकल-द्रव्यकृत्स्न और प्रमाण-द्रव्यकृत्स्न।
जो वस्त्र अपने आदि और अन्त भाग से युक्त हो, किनारीवाला हो, कोमल स्पर्शयुक्त हो और काजल, काले-पीले धब्बे आदि से रहित हो, उसे द्रव्य की अपेक्षा सकलकृत्स्न कहते हैं।
इसके भी जघन्य, मध्यम और उत्कृष्ट की अपेक्षा तीन भेद हैं।