Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
२०२]
[बृहत्कल्पसूत्र विवेचन-१. अविनीत-जो विनय-रहित है, आचार्य या दीक्षाज्येष्ठ साधु आदि के आनेजाने पर अभ्युत्थान, सत्कार-सम्मान आदि यथोचित विनय को नहीं करता है, वह 'अविनीत' कहा गया है।
२. विकृति-प्रतिबद्ध-जो दूध, दही आदि रसों में गृद्ध है, उन रसों के नहीं मिलने पर सूत्रार्थ आदि के ग्रहण करने में मन्द उद्यमी रहता है, वह 'विकृति-प्रतिबद्ध' कहा गया है।
३. अव्यवशमितप्राभृत-अल्प अपराध करने पर जो अपराधी पर प्रचण्ड क्रोध करता है और क्षमा याचना कर लेने पर भी बार-बार उस पर क्रोध प्रकट करता है, उसे 'अव्यवशमितप्राभृत' कहते
ये तीन प्रकार के साधु सूत्र-वाचना और उभय-वाचना के अयोग्य हैं, क्योंकि विनय से ही विद्या की प्राप्ति होती है, अविनयी शिष्य को विद्या पढ़ाना व्यर्थ या निष्फल तो जाता है, प्रत्युत कभीकभी दुष्फल भी देता है।
जो दूध-दही आदि विकृतियों में आसक्त है, उसके हृदय में दी गई वाचना स्थिर नहीं रह सकती है अतः उसे भी वाचना देना व्यर्थ है।
जिसके स्वभाव में उग्रता है, जरा-सा भी अपराध हो जाने पर जो अपराधी पर भारी रोष प्रकट करता है, क्षमा मांग लेने पर भी बार-बार दोहराता है, ऐसे व्यक्ति को भी वाचना देना व्यर्थ होता है। ऐसे व्यक्ति से लोग इस जन्म में भी स्नेह करना छोड़ देते हैं और परभव के लिए भी वह तीव्र वैरानुबन्ध करता है, इसलिए उक्त तीनों ही प्रकार के शिष्य सूत्र, अर्थ या दोनों की वाचना के लिए अयोग्य कहे गये हैं।
किन्तु जो विनय-सम्पन्न हैं, दूध, दही आदि विगयों के सेवन में जिनकी आसक्ति नहीं है और जो क्षमाशील हैं, ऐसे शिष्यों को ही सूत्र की, उसके अर्थ की तथा दोनों की वाचना देना चाहिए, क्योंकि उनको दी गई वाचना श्रुत का विस्तार करती है, ग्रहण करने वाले का इहलोक और परलोक सुधारती है और जिनशासन की प्रभावना करती है। सूत्रोक्त दोष वाला भिक्षु संयम आराधना के भी अयोग्य होता है। उसे दीक्षा भी नहीं दी जा सकती है। दीक्षा देने के बाद अवगुणों के ज्ञात होने पर उसे वाचना के लिए उपाध्याय के पास नहीं रखना चाहिए किन्तु प्रवर्तक एवं स्थविर के नेतृत्व में अन्य अध्ययन शिक्षाएं एवं आचारविधि का ज्ञान कराना चाहिए। ऐसा करने पर यदि उक्त योग्यता प्राप्त हो जाए तो वाचना के लिए उपाध्याय के पास रखा जा सकता है। योग्य न बनने पर सदा अगीतार्थ रहता है और दूसरों के अनुशासन में रहते हुए संयम पालन करता है।
जो गच्छप्रमुख सूत्रोक्त विधि का पालन न करते हुए योग्य-अयोग्य के निर्णय किए बिना सभी को इच्छित वाचना देते हैं-उपाध्याय आदि वाचना देने वाले की नियुक्ति नहीं करते हैं अथवा उनके प्रति विनय-प्रतिपत्ति आदि के पालन की व्यवस्था भी नहीं करते हैं। इस प्रकार वाचना सम्बन्धी सूत्र-विधानों का यथार्थ पालन नहीं करने से वे गच्छप्रमुख निशीथ उ. १९ के अनुसार प्रायश्चित्त के पात्र होते हैं। ये प्रायश्चित्त इस प्रकार हैं
१. आगमनिर्दिष्ट क्रम से वाचना न दे किन्तु स्वेच्छानुसार किसी भी सूत्र की वाचना दे या दिलवाए।