Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[बृहत्कल्पसूत्र स्त्री-पुरुषों के निवास से रहित मकान में ही साधु-साध्वियों को ठहरना चाहिए। केवल पुरुषों के निवास वाले मकान में भिक्षु और केवल स्त्रियों के निवास वाले मकान में साध्वियां ठहर सकती हैं। द्रव्य या भावप्रतिबद्ध उपाश्रय में भिक्षु को रहना नहीं कल्पता है, कदाचित् साध्वियां रह सकती हैं। प्रतिबद्धमार्ग वाले उपाश्रय में भिक्षु को रहना नहीं कल्पता है, साध्वियां कदाचित् रह सकती हैं। किसी के साथ क्लेश हो जाए तो उसके उपशान्त न होने पर भी स्वयं को सर्वथा उपशान्त होना अत्यन्त आवश्यक है। अन्यथा संयम की आराधना नहीं होती है। साधु साध्वियों को चातुर्मास में एक स्थान पर ही रहना चाहिए तथा हेमन्त और ग्रीष्म ऋतु में शक्ति के अनुसार विचरण करते रहना चाहिए। जिन राज्यों में परस्पर विरोध चल रहा हो वहां बारम्बार गमनागमन नहीं करना चाहिए। साधु या साध्वियां गोचरी आदि के लिये गये हों और वहां कोई वस्त्रादि लेने के लिए कहे तो आचार्यादि की स्वीकृति की शर्त रखकर. ही ग्रहण करे। यदि वे स्वीकृति दें तो रखें, अन्यथा लौटा देवें। साधु-साध्वियां रात्रि में आहार, वस्त्र, पात्र, शय्या-संस्तारक ग्रहण न करें। कभी विशेष परिस्थिति में शय्या-संस्तारक ग्रहण किया जा सकता है तथा चुराये गये वस्त्र, पात्रादि कोई पुनः लाकर दे तो उन्हें रात्रि में भी ग्रहण किया जा सकता है। रात्रि में या विकाल में साधु-साध्वियों को विहार नहीं करना चाहिए तथा दूर क्षेत्र में होने वाली संखडी में आहार ग्रहण करने के लिए भी रात्रि में नहीं जाना चाहिये। साधु-साध्वियों को रात्रि में उच्चार-प्रश्रवण या स्वाध्याय के लिये उपाश्रय से कुछ दूर अकेले नहीं जाना चाहिए, किन्तु दो या तीन-चार को साथ लेकर जा सकते हैं। चारों दिशाओं में जो आर्यक्षेत्रों की सीमा सूत्र में बताई गई है, उसके भीतर ही साधुसाध्वियों को विचरंना चाहिए। किन्तु संयम की उन्नति के लिए विवेकपूर्वक किसी भी योग्य क्षेत्र में विचरण किया जा सकता है।
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उपसंहार
सूत्र १-५
इस उद्देशक मेंवनस्पति विभागों के (ताल-प्रलम्ब के) अनेक खाद्य पदार्थों के कल्प्याकल्प्य का, कल्पकाल की मर्यादा का,