Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[दशाश्रुतस्कन्ध तस्सणंअतिजायमाणस्स वा, णिज्जायमाणस्सवा, पुरओमहंदासीदासकिंकरकम्मकरपुरिसा छत्तं भिंगारं गहाय निगच्छंति जाव' तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि पंच अवुत्ता चेव अब्भुटुंति-'भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव' किं ते आसगस्स सदति?' ।
प०-तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेजा?
उ०-हंता! आइक्खेज्जा। प०-से णं पडिसुणेज्जा। उ०-णो इणढे समठे। अभविए णं ते तस्स धम्मस्स सवणयाए।
से य भवइ महिच्छे जाव दाहिणगामी नेरइए कण्हपक्खिए, आगमिस्साए दुल्लहबोहिए यावि भवइ।
तं एवं खलु समणाउसो! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे जंणो संचाएइ केवलिपण्णत्तं धम्म पडिसुणित्तए।
हे आयुष्मन् श्रमणो! मैंने धर्म का निरूपण किया है। यह निर्ग्रन्थ प्रवचन ही सत्य है, श्रेष्ठ है, प्रतिपूर्ण है, अद्वितीय है, शुद्ध है, न्यायसंगत है, शल्यों का संहार करने वाला है, सिद्धि, मुक्ति, निर्याण एवं निर्वाण का यही मार्ग है, यही यथार्थ है, सदा शाश्वत है और सब दुःखों से मुक्त होने का यही मार्ग है।
इस सर्वज्ञप्रज्ञप्त धर्म के आराधक सिद्ध-बुद्ध-मुक्त होकर निर्वाण प्राप्त होते हैं और सब दुःखों का अन्त करते हैं।
इस धर्म की आराधना के लिए उपस्थित होकर आराधना करते हुए निर्ग्रन्थ के भूख-प्यास, सर्दी-गर्मी आदि अनेक परीषह-उपसर्गों से पीड़ित होने पर कामवासना का प्रबल उदय हो जाए और साथ ही संयमसाधना में विचरण करते हुए वह विशुद्ध मातृ-पितृ पक्ष वाले उग्रवंशीय या भोगवंशीय राजकुमार को देखे।
__उनमें से किसी के घर में प्रवेश करते या निकलते समय छत्र, झारी आदि ग्रहण किये हुए अनेक दास-दासी किंकर और कर्मकर पुरुष आगे-आगे चलते हैं।
उसके बाद उस राजकुमार के आगे उत्तम अश्व, दोनों ओर गजराज और पीछे-पीछे श्रेष्ठ सुसज्जित रथ चलते हैं और वह अनेक पैदल चलने वाले पुरुषों से घिरा रहता है। जो कि श्वेत छत्र ऊँचा उठाये हुए, झारी लिये हुए, ताड़पत्र का पंखा लिए, श्वेत चामर डुलाते हुए चलते हैं । इस प्रकार के वैभव से वह बारम्बार गमनागमन करता है।
__ वह राजकुमार यथासमय स्नान कर यावत् सब अलंकारों से विभूषित होकर विशाल कूटागारशाला (राजप्रासाद) में दोनों किनारों से उन्नत और मध्य में अवनत एवं गम्भीर (इत्यादि शय्यावर्णन जानना चाहिये।) ऐसे सर्वोच्च शयनीय में सारी रात दीपज्योति जगमगाते हुए वनितावृन्द से घिरा हुआ कुशल १. इसी निदान में। २. इसी निदान में।