Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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बृहत्कल्पसूत्र
प्रथम उद्देशक
साधु-साध्वी के प्रलंब - ग्रहण करने का विधि-निषेध
१. नो कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे ताल - पलम्बे अभिन्ने पडिग्गाहित्तए । २. कप्पइ निग्गंथाण वा निग्गंथीण वा आमे ताल - पलम्बे भिन्ने पडिग्गाहित्तए । ३. कप्पइ निग्गंथाणं पक्के ताल- पलम्बे भिन्ने वा अभिन्ने वा पडिग्गाहित्तए । ४. नो कप्पइ निग्गंथीणं पक्के ताल- पलम्बे अभिन्ने पडिग्गाहित्तए ।
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५. कप्पइ निग्गंथीणं पक्के ताल- पलम्बे भिन्ने पडिग्गाहित्तए; से वि य विहिभिन्ने, नो चेव णं अविहिभिन्ने ।
१. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को अभिन्न शस्त्र - अपरिणत कच्चे ताल - प्रलम्ब ग्रहण करना नहीं
कल्पता है।
२. निर्ग्रन्थों और निर्ग्रन्थियों को भिन्न- शस्त्रपरिणत कच्चा ताल - प्रलम्ब ग्रहण करना
कल्पता है।
३. निर्ग्रन्थों को खण्ड-खण्ड किया हुआ या अखण्ड पक्व ( शस्त्रपरिणत) ताल - प्रलम्ब ग्रहण करना कल्पता है ।
४. निर्ग्रन्थियों को अखण्ड पक्व ( शस्त्रपरिणत ) ताल - प्रलम्ब ग्रहण करना नहीं कल्पता है।
५. निर्ग्रन्थियों को खण्ड-खण्ड किया हुआ पक्व ( शस्त्रपरिणत ) ताल - प्रलम्ब ग्रहण करना कल्पता है। वह भी विधिपूर्वक भिन्न ( अत्यन्त छोटे-छोटे खण्डकृत) हो तो ग्रहण करना कल्पता है, अविधि-भिन्न हो तो ग्रहण करना नहीं कल्पता है ।
विवेचन-सूत्रपठित ‘ताल - प्रलम्ब' पद सभी फलों का सूचक है। 'एक के ग्रहण करने पर सभी सजातीय ग्रहण कर लिए जाते हैं' - इस न्याय के अनुसार 'ताल - प्रलम्ब' पद से 'ताल - फल' के अतिरिक्त केला, आम, अनार, आदि फल भी ग्रहण करना अभीष्ट है ।
इसी प्रकार 'प्रलम्ब' पद को अन्तः दीपक ( अन्त के ग्रहण से आदि एवं मध्य का ग्रहण) मानकर मूल, कन्द, स्कन्ध आदि भी ग्रहण किये गये हैं ।
प्रथम, द्वितीय सूत्र में 'आम' पद का अपक्व अर्थ और 'अभिन्न' पद का शस्त्र अपरिण अर्थ एवं 'भिन्न' पद का शस्त्र - परिणत अर्थ अभीष्ट है।