Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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१०२]
[दशाश्रुतस्कन्ध सेणं तत्थ णोअण्णेसिंदेवाणं देवीओ अभिमुंजिय-अभिमुंजिय परियारेइ, णो अप्पणो चेव अप्पाणं विउव्विय-विउव्विय परियारेइ, अप्पणिज्जियाओ देवीओ अभिमुंजिय-अभिमुंजिय परियारेइ।
सेणं ताओ देवलोगाओ आउक्खएणं जाव' पुमत्ताए पच्चायाति जाव' तस्स णं एगमवि आणवेमाणस्स जाव चत्तारि-पंच अवुत्ता चेव अब्भुटेति 'भण देवाणुप्पिया! किं करेमो जाव' किं ते आसगस्स सयइ।'
प०-तस्स णं तहप्पगारस्स पुरिसजायस्स तहारूवे समणे वा माहणे वा उभओ कालं केवलिपण्णत्तं धम्ममाइक्खेज्जा।
उ०-हंता! आइक्खेज्जा। प्र०-से णं पडिसुणेज्जा? उ०-हंता! पडिसुणेज्जा। प०-से णं सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएजा? उ०-हंता! सद्दहेज्जा, पत्तिएज्जा, रोएज्जा। प०-से णं सीलव्वयगुणवयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवज्जेज्जा? उ०-णो तिणठे समठे, सेणं दंसणसावए भवति। अभिगयजीवाजीवे जाव अद्विमिज्जापेमाणुरागरत्ते'अयमाउसो! निग्गंथे पावयणे अढे एस परमठे, सेसे अणठे।'
से णं एयारूवेणं! विहारेणं विहरमाणे बहूई वासाई समणोवासगपरियायं पाउणइ, पाउणित्ता कालमासे कालं किच्चा अण्णतरेसु देवलोगेसु देवत्ताए उववत्तारो भवति।
एवं खलु समणाउसो! तस्स णियाणस्स इमेयारूवे पावए फलविवागे-जंणो संचाएति सीलव्वयगुणव्वयवेरमणपच्चक्खाणपोसहोववासाइं पडिवज्जित्तए।
हे आयुष्मन् श्रमणो! मैंने धर्म का प्ररूपण किया है यावत् संयम की साधना में पराक्रम करते हुए निर्ग्रन्थ मानव सम्बन्धी कामभोगों से विरक्त हो जाय और वह यह सोचे कि
'मानव सम्बन्धी कामभोग अध्रुव हैं यावत् त्याज्य हैं।
जो ऊपर देवलोक में देव हैं, वे वहां अन्य देवों की देवियों के साथ विषय सेवन नहीं करते हैं तथा स्वयं की विकुर्वित देवियों के साथ भी विषय सेवन नहीं करते हैं, किन्तु अपनी देवियों के साथ कामक्रीडा करते हैं।'
___'यदि सम्यक् प्रकार से आचरित मेरे इस तप-नियम एवं ब्रह्मचर्य-पालन का कल्याणकारी विशिष्ट फल हो तो मैं भी आगामी काल में इस प्रकार के दिव्यभोग भोगता हुआ विचरण करूं तो यह श्रेष्ठ होगा।'
हे आयुष्मन् श्रमणो! इस प्रकार निर्ग्रन्थ या निर्ग्रन्थी (कोई भी) निदान करके यावत् देव रूप १-४. प्रथम निदान में देखें।