Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[दशाश्रुतस्कन्ध एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को सचित्त रजयुक्त काय से गृहस्थों के घरों में आहारपानी के लिए जाना या आना नहीं कल्पता है।
यदि यह ज्ञात हो जाये कि शरीर पर लगा हुआ रज-पसीना, सूखा पसीना, मैल या पंक रूप में परिणत हो गया तो उसे गृहस्थी के घरों में आहार-पानी के लिए जाना-आना कल्पता है। हस्तादि धोने का निषेध
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स नो कप्पति सीओदगवियडेण वा, उसिणोदगवियडेण वा, हत्थाणि वा, पायाणि वा, दंताणि वा, अच्छीणि वा, मुहं वा उच्छोलित्तए वा, पधोइत्तए वा।
नन्नत्थ लेवालेवेण वा भत्तमासेण वा।
एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को अचित्त शीतल या उष्ण जल से हाथ, पैर, दांत, नेत्र या मुख एक बार धोना अथवा बार-बार धोना नहीं कल्पता है।
किन्तु किसी प्रकार के लेप युक्त अवयव को और आहार से लिप्त हाथ आदि को धोकर शुद्ध कर सकता है। दुष्ट अश्वादि का उपद्रव होने पर भयभीत होने का निषेध
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स नो कप्पति आसस्स वा, हथिस्स वा, गोणस्स वा, महिसस्स वा, सीहस्स वा, वग्धस्स वा, विगस्स वा, दीवियस्स वा, अच्छस्स वा, तरच्छस्स वा, परासरस्स वा, सीयालस्स वा, विरालस्स वा, कोकंतियस्स वा, ससगस्स वा, चित्ताचिल्लडयस्स वा, सुणगस्स वा, कोलसुणगस्स वा, दुट्ठस्स आवयमाणस्स पयमवि पच्चोसक्कित्तए।
अदुट्ठस्स आवयमाणस्स कप्पइ जुगमित्तं पच्चोसकित्तए।
एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार के सामने अश्व, हस्ती, वृषभ, महिष, सिंह, व्याघ्र, भेड़िया, चीता, रीछ, तेंदुआ, अष्टापद, शृगाल, बिल्ला, लोमड़ा, खरगोश, चिल्लडक, श्वान, जंगली शूकर आदि दुष्ट प्राणी आ जाये तो उससे भयभीत होकर एक पैर भी पीछे हटना नहीं कल्पता है।
___ यदि कोई दुष्टता रहित पशु स्वाभाविक ही मार्ग में सामने आ जाए तो उसे मार्ग देने के लिए युगमात्र अर्थात् कुछ अलग हटना कल्पता है। सर्दी और गर्मी सहन करने का विधान
___मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स नो कप्पति छायाओ "सीयं ति" नो उण्हं एत्तए, उण्हाओ "उण्हं ति" छायं एत्तए।
जं जत्थ जया सिया तं तत्थ अहियासए।