Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सातवीं दशा]
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__ आठवीं नवमी और दसवीं प्रतिमा के एक-एक सप्ताह मिलाकर तीन सप्ताह तक एकांतर उपवास करना आवश्यक होता है तथा पारणे में आयम्बिल किया जाता है। दत्ति संख्या की मर्यादा को छोड़कर भिक्षा के व अन्य सभी नियम पूर्व प्रतिमा के समान पालन करने होते हैं। उपवास के दिन चारों आहार का त्याग करके सूत्रोक्त किसी एक आसन से ग्रामादि के बाहर पूर्ण दिन-रात स्थिर रहना होता है। तीनों प्रतिमाओं में केवल आसन का अंतर होता है।
आठवीं और नवमी प्रतिमा का प्रथम आसन 'उत्तानासन' और 'दंडासन' है। से दोनों आकाश की तरफ मुख करके सोने के हैं, किंतु इनमें अंतर यह है कि उत्तानासन में हाथ पांव आदि फैलाये हुए या अन्य किसी भी अवस्था में रह सकते हैं और दंडासन में मस्तक से पांव तक पूरा शरीर दंड के समान सीधा लम्बा रहता है और हाथ पैर अंतर रहित रहते हैं।
इसी प्रकार उक्त दोनों प्रतिमाओं का द्वितीय आसन 'एक पाश्र्वासन' और 'लकुटासन' है। ये दोनों एक पसवाडे (करवट) से सोने के हैं किन्तु इनमें अंतर यह है कि 'एक पाश्र्वासन' में भूमि पर एक पार्श्व भाग से सोना होता है और लकुटासन में करवट से सोकर मस्तक एक हथेली पर टिकाकर
और पांव पर पांव चढ़ाकर लेटे रहना होता है। इस प्रकार इसमें मस्तक और एक पांव भूमि से ऊपर रहता है।
दोनों प्रतिमाओं का तृतीय आसन 'निषद्यासन' और 'उत्कुटुकासन' है। ये दोनों बैठने के आसन हैं । निषद्यासन में पलथी लगाकर पर्यंकासन से सुखपूर्वक बैठा जाता है और 'उत्कुटुक-आसन' में दोनों पांवों को समतल रख कर उन पर पूरे शरीर को रखते हुए बैठना होता है। यह उत्कृष्ट गुरुवंदन का आसन है।
दसवीं प्रतिमा के तीनों आसनों की यह विशेषता है कि वे न बैठने के, न सोने के और न सीधे खड़े रहने के हैं किन्तु बैठने तथा खड़े रहने के मध्य की अवस्था के हैं।
__प्रथम गोदुहासन में पूरे शरीर को दोनों पांवों के पंजों पर रखना पड़ता है। इसमें जंघा व उरु आपस में मिले हुए रहते हैं और दोनों नितम्ब एडी पर टिके हुए रहते हैं।
दूसरे वीरासन में पूरा शरीर दोनों पंजों के आधार पर तो रखना पड़ता है किन्तु इसमें नितम्ब एडी से कुछ ऊपर उठे हुए रखने पड़ते हैं तथा जंघा और उरु में भी कुछ दूरी रखनी पड़ती है। जिस प्रकार कुर्सी पर बैठे व्यक्ति के नीचे से कुर्सी निकाल देने पर जो आकार अवस्था उसकी होती है वैसा ही लगभग इस आसन का आकार समझना चाहिये।
तीसरा आसन आम्रकुब्जासन है तथा विकल्प से इसका अंतकब्जासन नाम और व्याख्या भी उपलब्ध है। इस आसन में भी पूरा शरीर तो पैरों के पंजों पर रखना पड़ता है, घुटने कुछ टेढ़े रखने होते हैं, शेष शरीर का सम्पूर्ण भाग सीधा रखना पड़ता है। जिस प्रकार आम ऊपर से गोल और नीचे से कुछ टेढ़ा होता है इसी प्रकार यह आसन किया जाता है।
किसी भी एक आसन से २४ घण्टे रहना यद्यपि कठिन है, फिर भी दसवीं प्रतिमा के तीनों आसन तो अत्यन्त कठिन हैं। सामान्य व्यक्ति के लिये तो इन आसनों में एक घण्टा रहना भी अशक्य होता है।