Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[दशाश्रुतस्कन्ध २. प्र०- भगवन्! श्रुतसम्पदा क्या है? उ०- श्रुतसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. अनेकशास्त्रों का ज्ञाता होना। २. सूत्रार्थ से भलीभांति परिचित होना। ३. स्वसमय और परसमय का ज्ञाता होना। ४. शुद्ध उच्चारण करने वाला होना।
यह चार प्रकार की श्रुतसम्पदा है। ३. प्र०- भगवन्! वह शरीरसम्पदा क्या है? उ०-शरीरसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. शरीर की लम्बाई-चौड़ाई का उचित प्रमाण होना । २. लजास्पद शरीर वाला न होना। ३. शरीर-संहनन सुदृढ़ होना।
४. सर्व इन्द्रियों का परिपूर्ण होना। यह चार प्रकार की शरीरसम्पदा है। ४. प्र०- भगवन्! वचनसम्पदा क्या है? उ०-वचनसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. आदेयवचन वाला होना। २. मधुरवचन वाला होना। ३. राग-द्वेषरहित वचन वाला होना। ४. सन्देहरहित वचन वाला होना।
___ यह चार प्रकार की वचनसम्पदा है। ५. प्र०- भगवन् ! वाचनासम्पदा क्या है? उ०- वाचनासम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. शिष्य की योग्यता का निश्चय करके मूल पाठ की वाचना देने वाला होना। २. शिष्य की योग्यता का विचार करके सूत्रार्थ की वाचना देने वाला होना । ३. पूर्व में पढाये गये सूत्रार्थ को धारण कर लेने पर आगे पढ़ाने वाला होना। ४. अर्थ-संगतिपूर्वक नय-प्रमाण से अध्यापन कराने वाला होना।
यह चार प्रकार की वाचनासम्पदा है। ६. प्र०- भगवन् ! मतिसम्पदा क्या है? । उ.- मतिसम्पदा चार प्रकार की कही गई है। जैसे
१. अवग्रहमतिसम्पदा-सामान्य रूप से अर्थ को जानना। २. ईहामतिसम्पदा-सामान्य रूप में जाने हुए अर्थ को विशेष रूप से जानने की इच्छा होना। ३. अवायमतिसम्पदा-ईहित वस्तु का विशेष रूप से निश्चय करना। ४. धारणामतिसम्पदा-ज्ञात वस्तु का कालान्तर में स्मरण रखना। (१) प्र०-भगवन् ! अवग्रहमतिसम्पदा क्या है? उ०-अवग्रहमतिसम्पदा छह प्रकार की कही गई है। जैसे
१. प्रश्न आदि को शीघ्र ग्रहण करना। २. बहुत अर्थ को ग्रहण करना। ३. अनेक प्रकार के अर्थों को ग्रहण करना। ४. निश्चित रूप से अर्थ को ग्रहण करना।