Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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[दशाश्रुतस्कन्ध
२. जइ माझे चरिज्जा; नो आइमे चरिज्जा, नो चरिमे चरेज्जा। ३. जइ चरिमे चरेज्जा; नो आइमे चरेज्जा, नो मज्झिमे चरेज्जा। एकमासिकी भिक्षुप्रमिताधारी अनगार के भिक्षाचर्या करने के तीन काल कहे हैं, यथा१. दिन का प्रथम भाग, २. दिन का मध्य भाग, ३. दिन का अन्तिम भाग। १. यदि दिन के प्रथमभाग में भिक्षाचर्या के लिए जाए तो मध्य और अन्तिम भाग में न
जाए। २. यदि दिन के मध्यभाग में भिक्षाचर्या के लिए जाए तो प्रथम और अन्तिम भाग में न
जाए। ३. यदि दिन के अन्तिमभाग में भिक्षाचर्या के लिए जाए तो प्रथम और मध्यम भाग में न
जाए। प्रतिमाधारी की गोचरचर्या
___ मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स छव्विहा गोयरचरिया पण्णत्ता, तं जहा
१. पेडा, २. अद्धपोड, ३. गोमुत्तिया, ४. पंतगवीहिया, ५. संबुक्कावट्टा, ६. गंतुपच्चागया।
एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार के छः प्रकार की गोचरी कही गई है, यथा
१. चौकोर पेटी के आकार से भिक्षाचर्या करना। २. अर्धपेटी के आकार से भिक्षाचर्या करना। ३. बैल के मूत्रोत्सर्ग के आकार से भिक्षाचर्या करना। ४. पतंगिये के गमन के आकार से भिक्षाचर्या करना। ५. शंखावर्त के आकार से भिक्षाचर्या करना। ६. जाते या पुनः आते भिक्षाचर्या करना। प्रतिमाधारी का वसतिवास-काल
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स जत्थ णं केइ जाणइ, कप्पड़ से तत्थ एगराइयं वसित्तए।
जत्थ णं केइ न जाणइ, कप्पइ से तत्थ एगरायं वा, दुरायं वा वसित्तए। नो से कप्पइ एगरायाओ वा, दुरायाओ वा परं वत्थए।
जे तत्थ एगरायाओ वा, दुरायाओ वा परं वसति, से संतरा छेए वा परिहारे वा। एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगारको जहां कोई जानता हो, वहां एक रात रहना कल्पता है।
जहाँ कोई नहीं जानता हो, वहां उसे एक या दो रात रहना कल्पता है। किन्तु एक या दो रात से अधिक रहना नहीं कल्पता है।
यदि एक या दो रात से अधिक रहता है तो वह इस कारण से दीक्षाछेद या परिहार तप का पात्र होता है।