Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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सातवीं दशा]
[५३ प्रतिमाधारी की कल्पनीय भाषाएँ
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स कप्पति चत्तारि भासाओ भासित्तए, तं जहा
१. जायणी, २. पुच्छणी, ३. अणुण्णवणी ४. पुटुस्स वागरणी। एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को चार भाषाएँ बोलना कल्पता है, यथा
१. याचनी-आहारादि की याचना करने के लिए। २. पृच्छनी-मार्ग आदि पूछने के लिए। ३. अनुज्ञापनी-आज्ञा लेने के लिए। ४. पृष्ठव्याकरणी-प्रश्न का उत्तर देने के लिए। प्रतिमाधारी के कल्पनीय उपाश्रय
मासियं णं भिक्खुपडिमं पडिवनस्स अणगारस्स कप्पइ तओ उवस्सया पडिलेहित्तए, तं जहा
१. अहे आरामगिहंसि वा, २. अहे वियडगिहंसि वा, ३. अहे रूक्खमूलगिहंसि वा, एवं तओ उवस्सया अणुण्णवेत्तए, उवाइणित्तए य।
एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को तीन प्रकार के उपाश्रयों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा
१. उद्यान में बने हुए गृह में, २. चारों ओर से खुले हुए गृह में, ३. वृक्ष के नीचे या वहां बने हुए गृह में। इसी प्रकार तीन उपाश्रय की आज्ञा लेना और ठहरना कल्पता है। प्रतिमाधारी के कल्पनीय संस्तारक
___ मासियंणं भिक्खुपडिमं पडिवन्नस्स अणगारस्स कप्पइ तओ संथारगा पडिलेहित्तए, तं जहा
___१. पुढविसिलं वा, २. कट्ठसिलं वा, ३ अहासंथडमेव वा संथारग। एवं तओ संथारगा अणुण्णवेत्तए, उवाइणित्तए य।
___एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार को तीन प्रकार के संस्तारकों का प्रतिलेखन करना कल्पता है, यथा
१. पत्थर की शिला, २. लकड़ी का पाट, ३. पहले से बिछा हुआ संस्तारक। इसी प्रकार तीन संस्तारक की आज्ञा लेना और ग्रहण करना कल्पता है।' प्रतिमाधारी को स्त्री-पुरुष का उपसर्ग
मासियं णं भिक्खुपडिम पडिवनस्स अणगारस्स इत्थी वा पुरिसे वा उवस्सयं उवागच्छेज्जा, णो से कप्पति तं पडुच्च निक्खमित्तए वा, पविसित्तए वा।
एकमासिकी भिक्षुप्रतिमाधारी अनगार के उपाश्रय में यदि कोई स्त्री या पुरुष आ जावे तो उनके कारण उपाश्रय से बाहर जाना या बाहर हो तो अन्दर आना नहीं कल्पता है।