Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
View full book text
________________
छठी दशा]
[४५ ___आगमन से पूर्व दाल रंधी हुई हो और चावल पीछे से रंधे हों तो दाल लेना कल्पता है, किन्तु चावल लेना नहीं कल्पता है।
आगमन से पूर्व दाल और चावल दोनों रंधे हुए हों तो दोनों लेने कल्पते हैं, किन्तु बाद में रंधे हों तो दोनों लेने नहीं कल्पते हैं।
__(तात्पर्य यह है कि) आगमन से पूर्व जो आहार अग्नि आदि से दूर रखा हुआ हो वह लेना कल्पता है और जो आगमन के बाद में अग्नि आदि से दूर रखा गया हो वह लेना नहीं कल्पता है।
जब वह गृहस्थ के घर में भक्त-पान की प्रतिज्ञा से प्रविष्ट होवे तब उसे इस प्रकार बोलना कल्पता है
'प्रतिमाधारी श्रमणोपासक को भिक्षा दो।' इस प्रकार की चर्या से उसे विचरते हुए देखकर यदि कोई पूछेप्र०-हे आयुष्मन् ! तुम कौन हो? तुम्हें क्या कहा जाये? उ०-मैं प्रतिमाधारी श्रमणापोसक हूँ। इस प्रकार उसे कहना चाहिये।
इस प्रकार के विहार से विचरता हुआ वह जघन्य एक दिन, दो दिन या तीन दिन से लगाकर उत्कृष्ट ग्यारह मास तक विचरण करे।
यह ग्यारहवीं उपासकप्रतिमा है। स्थविर भगवन्तों ने ये ग्यारह उपासकप्रतिमाएँ कही हैं।
विवेचन-सामान्य रूप से कोई भी सम्यग्दृष्टि आत्मा व्रत धारण करने पर व्रतधारी श्रावक कहा जाता है। वह एक व्रतधारी भी हो सकता है या बारह व्रतधारी भी हो सकता है। प्रतिमाओं में भी अनेक प्रकार के व्रत, प्रत्याख्यान ही धारण किये जाते हैं, किन्तु विशेषता यह है कि इसमें जो भी प्रतिज्ञा की जाती है उसमें कोई आगार नहीं रखा जाता है और नियत समय में अतिचाररहित नियम का दृढ़ता के साथ पालन किया जाता है।
जिस प्रकार भिक्षुप्रतिमा धारण करने वाले को विशुद्ध संयमपर्याय और विशिष्ट श्रुत का ज्ञान होना आवश्यक है, उसी प्रकार उपासकप्रतिमा धारण करने वाले को भी बारह व्रतों के पालन का अभ्यास होना और कुछ श्रुतज्ञान होना भी आवश्यक है, किन्तु इसका कुछ स्पष्ट उल्लेख नहीं मिलता है।
प्रतिमा धारण करने वाले श्रावक को सांसारिक जिम्मेदारियों से निवृत्त होना तो आवश्यक है ही किन्तु सातवीं प्रतिमा तक गृहकार्यों का त्याग आवश्यक नहीं होता है, तथापि प्रतिमा के नियमों का शुद्ध पालन करना अत्यावश्यक होता है। आठवीं प्रतिमा से अनेक गृहकार्यों का त्याग करते हुए ग्यारहवीं प्रतिमा में सम्पूर्ण गृहकार्यों का त्याग करके श्रमण के समान आचार का पालन करता है।
___ग्यारह प्रतिमाओं में से किसी भी प्रतिमा को धारण करने वाले को आगे की प्रतिमा के नियमों का पालन करना आवश्यक नहीं होता है। स्वेच्छा से पालन कर सकता है अर्थात् पहली प्रतिमा में सचित्त का त्याग या श्रमणभूत जीवन धारण कर सकता है।