Book Title: Trini Chedsutrani
Author(s): Madhukarmuni, Kanhaiyalal Maharaj, Trilokmuni, Devendramuni, Ratanmuni
Publisher: Agam Prakashan Samiti
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चौथी दशा]
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यह शिष्य का उपकरण सम्बन्धी कर्तव्य पालन है।
२. सहायक होना-१. गुरुजनों के अनुकूल और हितकारी वचन बोलना, उनके आदेश निर्देश को 'तहत्ति' कहते हुए सविनय स्वीकार करना।
२. गुरुजनों के समीप बैठना, बोलना, खड़े रहना, हाथ और पैर आदि अंगोपांगों का संचालन करना इत्यादि सभी काया की प्रवृत्तियाँ इस प्रकार करना कि जो उन्हें अनुकूल लगें अर्थात् कोई भी प्रवृत्ति गुरुजनों के प्रतिकूल न हो, यह विवेक रखना। ___३. गुरुजनों के शरीर का संबाहन (मर्दन) आदि सेवाकार्य भी विवेकपूर्वक करना।
४. गुरुजनों के सभी कार्य उनके आदेशानुसार करना तथा भाव, भाषा, प्रवृत्ति, प्ररूपणा आदि किसी में भी उनकी रुचि से कुछ भी विपरीत नहीं करना।
यह शिष्य का 'सहायकता' कर्तव्य-पालन है। ३. गुणानुवाद-१. आचार्य आदि के गुणों का कीर्तन करना।
२. अवर्णवाद, निन्दायाअसत्य आक्षेप करने वाले को उचित प्रत्युत्तर देकर निरुत्तर करना व प्रबल युक्तियों से प्रतिपक्षी को इस प्रकार हतप्रभ करना कि भविष्य में वह ऐसा दुःसाहस न कर सके।
३. आचार्य आदि का गुणकीर्तन करने वालों को धन्यवाद कहकर उत्साहित करना। उसका जनता को परिचय देना।
४. अपने से बड़ों की सेवा-भक्ति करना एवं यथोचित आदर देना। यह शिष्य का 'गुणानुवाद' कर्तव्य पालन है। ४. भार-प्रत्यारोहण-आचार्य के कार्यभार को सम्भालना योग्य शिष्य का कर्तव्य होता है। यथा-१. धर्मप्रचार आदि के द्वारा नये-नये शिष्यों की वृद्धि हो, इस तरह प्रयत्न करना।
२. गण में विद्यमान शिष्यों को आचारविधि का ज्ञान कराने में और शुद्ध आचार का अभ्यास कराने में प्रवृत्त रहना।
३. जहाँ जब जिसको सेवा की आवश्यकता हो स्वयं तन-मन से लगे रहना।
४. श्रमणों में परस्पर कलह या विवाद हो जाय तो उसका निष्पक्षभाव से निराकरण कर देना तथा इस तरह की व्यवस्था या उपाय करना कि जिससे साधर्मिक साधुओं में कलह आदि होने का अवसर ही उपस्थित न हो और गच्छ के साधु-साध्वियों के संयम, समाधि आदि की उत्तरोत्तर वृद्धि होती रहे।
यह शिष्य का भार-प्रत्यारोहण कर्तव्य पालन है।
इस प्रकार गच्छ-हित के कार्य करने वाला तथा आचार्य के आदेशों का पालन करने वाला शिष्य महान् कर्मनिर्जरा करता हुए गच्छ का संरक्षक हो जाता है। वह जिनशासन की सेवा तथा संयमाराधना करके सुगति को प्राप्त होता है।
॥चौथी दशा समाप्त॥