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णियप्पज्झाणसारो (निजात्मध्यानसार)
303-320 मंगलाचरण • ध्यान की परिभाषा • ध्यान के भेद • धर्मध्यान के भेद • संस्थान विचय के भेद • पिण्डस्थ आदि की परिभाषा • पिंडस्थ ध्यान के भेद • ध्यान से आत्मा की परमात्मता • आत्मा का स्वरूप • आत्म चिंतन से लाभ • आत्मानुभवी वंदनीय है। शुद्धात्मा के स्मरण से शद्धि • हर दशा में आत्मचिंतन • आत्मध्यान से दु:खों का नाश • संसार सागर सूख जाता है • आत्मतत्त्व को भूलने वाले मूढ़ हैं • परदव्वे णिरासत्ते, • क्लेश से बंध, विशुद्धि से मोक्ष • विशुद्धि के लोभी क्या करते हैं • आत्मध्यान से परमानंद • मूढ़ सुखाभास में जीते हैं • मोही की दशा • वस्तुतः वस्तुएँ मेरी हैं नहीं • निश्चित बुद्धि वाले ही सिद्ध होते है • आत्मध्यान ही उत्तम ध्यान है • वे कल्याणार्थी हैं • वे कल्याणार्थी नहीं हैं • क्योंकि कषायी स्वहित को नही • जानते • मान किसका रहा • जीवन उसीका सार्थक है • संक्लेशयुक्त जीवन से मरना भला • यह शरीर भी नाशवान है • शरीर का संसर्ग भी बुरा • विषय कौन चाहता है? • विषयेच्छा से नुकसान • उच्छिष्ठ हैं सभी भोग• जीव मोहवश उच्छिष्ठ को भोगता है • विषयजाल में मोही बंधते हैं • वस्तुतः आशा ही दुःखदायी है • आशा तजो, निजको भजो • मूढजन ही विषयासक्त होते हैं • संसारसुख निष्पक्ष नहीं है । सब कुछ परिवर्तन शील है • निर्ममत्व ही शरणभूत है • निर्ममत्व मोक्षार्थी के गुण • निर्ममत्व से ध्यान • ममता से गुणों का नाश होता है • वे धन्य हैं • इन्हें थोड़ा भी शेष मत छोड़ो • वे जीवित भी मरे के समान है • वह सीखना चाहिए • इसलिए इनमें जुड़ जाओ• अंत्य भावना • प्रशस्ति • गुरु-स्मरण
भावालोयणा (भावालोचना)
321-331 गुरु-स्मरण • नवदेवता-स्मरण • जिनागम-स्मरण • प्रतिज्ञा वाक्य • मैं कषायों से पीड़ित हूँ • हिंसादि पापों से भवभ्रमण • पाप किए सो फल भोगे • सुकृत नहीं किए मैंने • कुकृत्यों की आलोचना • और भी कहते हैं • सुमार्ग में चित्त नहीं लगा • भवभव की कहानी • प्रभुदर्शन में चित्त नहीं रमा• अविशेषता में भी अभिमान • यत्न की विपरीतता • श्रेष्ठ कार्यों में भी यत्न नहीं किया • अनेक भव निरर्थक गये • फिर भव पार कैसे होगा? • आपसे अपना चरित्र क्या कहूँ. आप ही रक्षा करो• मैं निजात्मशुद्धि चाहता हूँ • व्यवहार भावना • निश्चय भावना • लोकपूजा आदि कल्याण के साधन नहीं हैं • समता धारण करता हूँ • अंतिम भावना
वयणसारो(वचनसार)
333-351 मंगलाचरण • उत्तरोत्तर दुर्लभता • परमार्थ अति दुर्लभ है • सफलता का सूत्र • जीवन की शोभा • लोक उन्नतिकर सूत्र • शान्ति का सूत्र • धर्म का आचरण करो • ज्ञान से सब कुछ • शान्ति का क्रम • सद्गुणों से महत्त्व प्राप्त होता है • उत्तम पुरुष
सत्ताईस