Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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श्री स्थानांग सूत्र
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पाणाइवाय वेरमणे । जाव परिग्गह वेरमणे । एगे कोह विवेगे जाव मिच्छादंसणसल्ल
विवेगे ॥ ६ ॥
कठिन शब्दार्थ - पाणाइवाए प्राणातिपात, परिग्गहे परिग्रह, पेज्जे- राग, दोसे- द्वेष, अरइरई - अरति रति, मायामोसे - माया मृषावाद, मिच्छादंसणसल्ले - मिथ्यादर्शन शल्य, वेरमणे विरमण, विवेगे - विवेक - त्याग । हिंसा एक
भावार्थ - उच्छ्वास आदि दस प्राणों को प्राणी से पृथक् करने रूप प्राणातिपात है यावत् मृषावाद, अदत्तादान, मैथुन और परिग्रह, ये सब एक एक हैं। क्रोध यावत् मान, माया और लोभ एक एक है। राग एक है। द्वेष एक है यावत् कलह अभ्याख्यान, पैशुन्य और परपरिवाद एक एक है। अरति रति एक है। मायामृषावाद एक है। मिथ्यादर्शन शल्य एक है। प्राणातिपात से विरमण . यानी निवर्तना यावत् मृषावाद विरमण, अदत्तादान विरमण, मैथुन विरमण यावत् परिग्रह विरमण एक एक हैं। क्रोध का त्याग यावत् मिथ्यादर्शन शल्य का त्याग एक है ।। ६ ।।
विवेचन प्राणातिपात से लेकर मिथ्यादर्शन शल्य तक ये अठारह पापस्थान सामान्यतः एक एक हैं। इसी प्रकार इनका त्याग भी एक एक हैं। अठारह पापों का स्वरूप इस प्रकार है -
१. प्राणातिपात - प्राणों का अतिपात करना प्राणों को आत्मा से पृथक् करना प्राणातिपात. कहलाता है । प्राण दस हैं १. स्पर्शनेन्द्रिय बल प्राण २. रसनेन्द्रिय बल प्राण ३. घ्राणेन्द्रिय बल प्राण ४. चक्षुरिन्द्रिय बल प्राण ५. श्रोत्रेन्द्रिय बल प्राण ६. मन बल प्राण ७. वचन बल प्राण ८. काय बल प्राण ९. श्वासोच्छ्वास बलप्राण १०. आयुष्य बल प्राण। इनसे से किसी एक, दो या दसों के विनाश को प्राणातिपात कहते हैं। कहा भी है -
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पंचेन्द्रियाणि त्रिविधं बलं च, उच्छ्वास निःश्वास मथान्यदायुः । "प्राणाः दशैते भगवद्भिरुक्ताः, तेषां वियोजीकरण तु हिंसा"
- प्राणों का वियोजीकरण ही हिंसा है। मन, वचन और काया से हिंसा करना, करवाना और अनुमोदन के भेद से नौ प्रकार की हिंसा कही है। क्रोध, मान, माया और लोभ के वशीभूत होकर हिंसा करना इस तरह ९x४ = ३६ भेद प्राणातिपात के हो जाते हैं।
शंका- प्राणातिपात के स्थान पर जीवातिपात क्यों नहीं कहा है ?
समाधान - सूत्रकार ने प्राणातिपात के स्थान पर जीवातिपात शब्द का प्रयोग नहीं किया क्योंकि जीवातिपात कभी नहीं होता है अतः प्राणों के वियोग को ही प्राणातिपात कहा गया है।
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२. मृषावाद - झूठ बोलना मृषावाद है। मृषावाद चार प्रकार का होता है -
१. अभूतोद्भावन - अविद्यमान वस्तु का अस्तित्व बताना, जो जिस वस्तु का स्वरूप नहीं है
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