Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १ उद्देशक १ 000000000000000000000000000000000000000000000000000. त्र्यस, चउरंसे - चतुरस्र, पिहुले - पृथुल-विस्तीर्ण, परिमंडले - परिमंडल, किण्हे - कृष्ण, लोहिएलोहित, हलिहे - हरिद्र-पीला, सुक्किल्ले - शुक्ल, सुब्भिगंधे - सुरभिगंध, दुरभिगंधे - दुरभिगंध, तित्ते - तिक्त, कडुए - कटुक, कसाए - कषायैला, अंबिले - अम्ल-खट्टा, महुरे - मधुर (मीठा), कक्खडे - कर्कश, लुक्खे - रूक्ष।
भावार्थ - शब्द एक है। रूप एक है। रस एक है। स्पर्श एक है। शुभ शब्द एक है। अशुभ शब्द एक है। सुन्दर रूप एक है। खराब रूप एक है। दीर्घ अर्थात् लम्बा एक है। ह्रस्व अर्थात् छोटा एक है। वृत्त - रूपये की तरह गोल संस्थान एक है। त्र्यस्त्र यानी त्रिकोण संस्थान एक है। चतुरस्त्र यानी चार कोनों वाला- चतुष्कोण संस्थान एक है। पृथुल - विस्तीर्ण संस्थान एक है। परिमण्डल यानी चूड़ी के आकार वाला वलयाकार संस्थान एक है। काला रूप एक है। नीला रूप एक है। लोहित यानी लाल रूप एक है। हरिद्र यानी पीला रूप एक है। शुक्ल यानी सफेद रूप एक है। सुरभिगन्ध - सुगन्ध एक है। दुरभिगन्ध - दुर्गन्ध एक है। तिक्त - तीखा रस एक है। कटुक - कड़वा रस एक है। कषायला रस एक है। अम्ल - खट्टा रस एक है। मधुर - मीठा रस एक है। कर्कश - कठोर स्पर्श एक है। यावत् कोमल, लघु, गुरु, शीत, उष्ण, स्निग्ध और रूक्ष, ये स्पर्श एक एक हैं ।।५।। - विवेचन - वर्ण, गंध, रस और स्पर्श पुद्गल के लक्षण हैं। उपरोक्त सूत्र से पुद्गल का स्पष्ट वर्णन मिलता है। परमाणु के अतिरिक्त द्विप्रदेशी आदि स्कन्धों में पांच संस्थान में से कोई संस्थान अवश्य पाता है। ___जिसके द्वारा कहा जाता है वह शब्द (आवाज) है। जो दिखाई देता है वह रूप है। जो सूंघा जाता है वह गंध है। जो आस्वादन किया जाता है वह रसं है। जो स्पर्श किया जाता है वह स्पर्श है। जो श्रोत्रेन्द्रिय के लिए सुख रूप होता है मन को अच्छा लगता है वह शुभ शब्द है। इससे विपरीत जो श्रोत्रेन्द्रिय को दुःख रूप प्रतीत होता है और मन को अच्छा नहीं लगता है वह अशुभ शब्द है। . रस के पांच भेद बतलाये गये हैं उनमें तिक्त रस कफ नाशक है, कटुक रस वात नाशक है, अन्न रुचि रोकने वाला कषाय रस है। जिसका नाम मात्र सुनने से मुंह में पानी आ जाता है वह खट्टा रस है। चित्त को आनंदित करने वाला और पुष्टिकारक मधुर रस है। लवण रस पांच रसों के संसर्ग से बनता है अतः सूत्रकार ने उसे स्वतंत्र रस नहीं माना है।
वर्ण में वर्णत्व धर्म, शब्द में शब्दत्व धर्म, गंध में गंधत्व धर्म, रस में रसत्व धर्म, स्पर्श में स्पर्शत्व धर्म एक होने से उन्हें एक-एक कहा गया है। . एगे पाणाइवाए जाव एगे परिग्गहे। एगे कोहे जाव लोहे। एंगे पेज्जे एगे दोसे जाव एगे परपरिवाए। एगा अरइरई। एगे मायामोसे। एगे मिच्छादसणसल्ले। एगे
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