Book Title: Sthananga Sutra Part 01
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh
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स्थान १ उद्देशक १
जंगल में जाते हुए किसी पुरुष ने दूर से किसी खड़े पदार्थ को देखा तो मन में यह शंका हुई कि - "कि मयं स्थाणु यं पुरुषो वा" - क्या यह सूखे हुए वृक्ष का ढूंठ है या पुरुष है। फिर देखा कि - यह तो सिर को खुजला रहा है। इसलिये यह पुरुष होना चाहिये। यह तर्क की आगमिक व्याख्या है। ___ परोक्ष प्रमाण के पांच भेद हैं यथा-स्मरण, प्रत्यभिज्ञान, तर्क, अनुमान और आगम। इन पांच भेदों में से तीसरा भेद तर्क है जिसका अर्थ होता है - उपलब्धि और अनुपलब्धि से उत्पन्न होने वाला व्याप्ति ज्ञान।
- ज्ञान, दर्शन, चारित्र - 'जं सामण्णग्गहणं दंसणमेयं विसेसियं णाणं' - सामान्य स्वरूप का ग्रहण दर्शन है और उसमें विशेष स्वरूप का ग्रहण ज्ञान है। ज्ञानावरणीय कर्म के क्षयोपशम . या क्षय से ज्ञान तथा दर्शनावरणीय कर्म के क्षयोपशम या क्षय से दर्शन होता है। यहां ज्ञान जानने के अर्थ में और दर्शन श्रद्धा के अर्थ में है। चारित्र मोहनीय कर्म के क्षय से प्रकट हुआ आत्मा का विरति परिणाम चारित्र है। जो जाना हुआ नहीं वह श्रद्धा रूप नहीं है और जो श्रद्धा रूप नहीं उसका सम्यग् आचरण नहीं किया जा सकता है। इसीलिये ज्ञान, दर्शन और चारित्र - ये तीनों मोक्ष मार्ग है। तत्त्वार्थ सूत्र १/१ में भी कहा है - "सम्यग्-दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्ष मार्गः"1 उत्तराध्ययन सूत्र अध्ययन २८ गाथा २-३ में इस प्रकार कहा है - ‘णाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। . एस मग्गुत्ति पण्णत्तो, जिणेहिं वरदंसिहिं॥२॥ णाणं च दंसणं चेव, चरित्तं च तवो तहा। एवं मग्गमणुप्पत्ता, जीवा गच्छंति सोग्गइं॥३॥
अर्थ - राग द्वेष के विजेता तीर्थंकर भगवन्तों ने फरमाया है कि ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप यह मोक्ष का मार्ग हैं। इस मार्ग पर चलने वाला जीव सद्गति को प्राप्त होता है। इस गाथा में ज्ञान, दर्शन, चारित्र और तप को मोक्ष मार्ग बताया है। यहां तप का उल्लेख नहीं है। वास्तव में तप चारित्र का ही एक भेद है। अतः उसकी यहां विवक्षा नहीं की गयी है।
उपरोक्त सूत्रों में सूत्रकार ने जो कथन किया है वह सब जीवात्मा को ही लक्ष्य में रख कर किया है।
एगे समए। एंगे पएसे। एगे परमाणू। एगा सिद्धी। एगे सिद्धे । एगे परिणिव्वाणे। एगे परिणिव्युए ॥४॥ . कठिन शब्दार्थ - समए - समय, पएस - प्रदेश, सिद्धी - सिद्धि, सिद्धे - सिद्ध, परिणिव्वाणे- परिनिवार्ण-मोक्ष, परिणिव्वुए - परिनिर्वृत्त-सिद्ध अवस्था।
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