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[२६] क्रम सं० पृष्ठ सं०] क्रम सं.
पृष्ठ सं० १२ सातों नरक-पटलों को संख्या और ३१ नरकस्थ दुर्गन्धित मिट्टी की भीषणता ५३ उनके नाम
२५.! ३६ : रशियों के अधिक्षेत्र का प्रमाण ५६ १३ सातों नरकों के इन्द्रादिक बिल २७ | ३३ प्रवियों में उत्कृष्ट रूप से जन्म-मरण का १४ पृथक्-पृथक् श्रेणीबद्ध बिलों की संख्या २८ | अन्तर १५ पृथक-पृथक् प्रकीर्णक बिलों की संख्या २६ | ३४ पृश्वियों में उरण और शीत बाधा १६ सम्पूर्ण बिलों का व्यास
३० ३५ नरक में भावी तीर्थकर जीवों की विशेष १७ प्रत्येक नरकके संख्यातयोजन विस्तारवाले
व्यवस्था और असंख्यात योजन विस्तारवाले बिलों । ३६ रत्नत्रय धर्मके प्राचरण करने की प्रेरणा ५७ को संरूपा
३७ अन्त मङ्गल १८ इंद्रकादि तीनों प्रकारके बिलों का प्रमाण ३५
तृतीय अधिकार नरक दुःख वर्णन १६ सातों पृथ्वियों के बिल व्याप्त क्षेत्र का प्रमाए
१ मंगलाचरण २० बिलों का तियंग अन्तर ........
२ वर्णन का हेतु और प्रतिज्ञा २१ प्रत्येक पटल की जघन्य और उत्कृष्ट प्रायु ४० ३ नरक-बिलों का स्वरूप २२ प्रत्येक पटल के नारकियों के शरीर का ४ नरक भुमियों के स्पर्श एवं दुर्गंध का कथन ६० उत्सेध
५ नरक स्थित नदी, वन, वृक्ष एवं पवन २३ मारकियों के उपपाद स्थानों का प्राकार,
६ विक्रियाजन्य पशुपक्षियों का स्वरूप । व्यास एवं दीर्घता
७ संवेगोत्पादक अन्य भयंकर स्वरूप का २४ नरकप्राप्ति के कारण भूत परिणाम एवं
वर्णन पाचरण
८ नरकों में रोगजन्य वेदना २५ नारकियों की स्थिति, निपतन और
६ नरकों में शुधातृषाजन्य वेदना उत्पतन २६ नरकों में सम्भव लेश्याएं.............।
१० नरक गत शीत-उष्ण वेदना २७ कितने संहननों से युक्त जीव किस पृथ्वी
११ नरक के अन्य दुःखों का विवेचन तक उत्पन्न होता है ?
१२ पूर्वजन्मके पापोंका चितन एवं पश्चात्ताप ६५ २८ कौन जीव किस पृथ्वी तक जन्म ले सकते । १३ अभक्ष्यभक्षण और पांच पापों का चिंतन ६६
५१ | १४ धर्माचरणरहित एवं कुधर्मसेवनपूर्वक २६ कौन जीव किस नरक में कितनी बार
पूर्वभब व्यतीत करने का पश्चात्ताप ६६ उत्पन्न हो सकता है? हो सकता है?
५२ | १५ पश्चात्तापरूप भीषण संताप का विवेचन ६७ ३० नरक से निकलने वाले जीवों की उत्पत्ति १६ अन्य नारकियों द्वारा प्रदत्त भयंकर दुःखों का नियम
५३ का वर्णन