Book Title: Shatkhandagama Pustak 08
Author(s): Pushpadant, Bhutbali, Hiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
Publisher: Jain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
View full book text
________________
पृष्ठ
३०९
३४०
विषय-सूची क्रम नं. विषय
पृष्ठ क्रम नं. विषय १५३ सूक्ष्मसाम्परायिक संयतोंमें । १६५ तेज और पद्मलेश्यावालोंमें पांच ज्ञानावरणीय आदिके
पांच ज्ञानावरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार ३०८ बन्घस्वामित्वका विचार १५४ यथाख्यातविहारशुद्धिसंयतोंमें १६६ द्विस्थानिक प्रकृतियोंकी ओघके सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वका
समान प्ररूपणा विचार
१६७ असातावेदनीयकी ओघके १५५ संयतासंयतोंमें पांच शाना
समान प्ररूपणा वरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका विचार
१६८ मिथ्यात्व आदिके बन्धः
स्वामित्वका विचार १५६ असंयत जीवोंमें पांच शानावरणीय आदिके बन्धस्वामित्वका
१६९ अप्रत्याख्यानावरणीयकी ओघके विचार
समान प्ररूपणा १५७ विस्थानिक प्रकृतियोंकी ओघके १७० प्रत्याख्यानावरणकी ओघके समान प्ररूपणा
समान प्ररूपणा १५८ एकस्थानिक प्रकृतियोंकी १७१ मनुष्यायुकी ओघके समान ओघके समान प्ररूपणा
प्ररूपणा १५९ मनुष्यायु और देवायुके बन्ध- १७२ देवायुकी ओघके समान स्वामित्वका विचार
प्ररूपणा १६० तीर्थकर प्रकृतिके बन्ध
१७३ आहारकशरीर और आहारकस्वामित्वका विचार
शरीरांगोपांगके बन्धस्वामित्वका
विचार दर्शनमार्गणा १६१ चक्षुदर्शनी और अचक्षुदर्शनी
| १७४ तीर्थकर प्रकृतिके बन्ध
खामित्वका विचार जीवोंमें ओघके समान बन्धस्वामित्वकी प्ररूपणा
। १७५ पदमलेश्यावालोंमें मिथ्यात्व१६२ सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वमें ।
दण्डककी नारकियोंके समान
प्ररूपणा कुछ विशेषता
१७६ शुक्ललेश्यावालोंमें तीर्थकर १६३ अवधिदर्शनी जीवोंमें अवधि
प्रकृति तक ओघके समान ज्ञानियों और केवलदर्शनी
प्ररूपणा जीवों में केवलज्ञानियोंके समान
! १७७ उक्त जीवोंमें सातावेदनीयके बन्धस्वामित्वकी प्ररूपणा
बन्धस्वामित्वकी मनोयोगियोंके लेश्यामार्गणा
समान प्ररूपणा १६४ कृष्ण, नील और कापोत लेश्या- | १७८ द्विस्थानिक और एकस्थानिक वालोमें असंयतोंके समान
प्रकृतियोंकी नवग्रैवेयकविमान बन्धस्वामित्वकी प्ररूपणा ३२० । वासी देवोंके समान प्ररूपणा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org