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ऐ) प्रतिमाविद्या ग्रंथ :- रूपमण्डन, रूपावर्त, गंधर्वविद्या, रूपावतार, रूपविधिद्वारदीपिका, मूर्तिज्ञान, ध्यानपद्धति और प्रतिमालक्षण । ओ) उपवनविद्याग्रंथ :- आहटिक, विहारकारिका, शाधरपद्धति । औ) वास्तुविद्या :- गृहवास्तुसार, निर्दोषवास्तु, वास्तुबोध, वास्तुमंजरी, वास्तुविचार, वास्तुसमुच्चय, वास्तुपद्धति, वास्तुशास्त्र, वास्तुतंत्र, वास्तुमाहात्म्य, वास्तुकोश, वास्तुरत्नावली, वास्तुप्रकाश, वास्तुचक्र, वास्तुराज, वास्तुकरण, वास्तुपुरुष, वास्तुनिधि, वास्तुनिर्माण, वास्तुशिरोमणि, वास्तुविद्या, वास्तुतिलक, वास्तुलक्षण, वास्तुसंग्रह, वास्तुप्रदीप, वास्तुविद्यापति, सनत्कुमारवास्तु, मानसारवास्तु, रुद्रयामलवास्तु, विश्वंभरवास्तु, कुमारवास्तु, वास्तुवल्लभ, वास्तुतंत्र, प्रतिष्ठातंत्र, मनुतंत्र, नलतंत्र, त्वाष्ट्रतंत्र, सुखानन्दवास्तु, फेरुठकुरवास्तु ।
शिल्पज्ञान, शिल्पप्रकाश, शिल्पसंग्रह, शिल्पकलादीप, शिल्प-साहित्य, शिल्परत्नाकर, शिल्पावतंस, शिल्पविज्ञान, शिल्पसर्वस्वसंग्रह, शिल्पार्थसार, शिल्पशास्त्रसार, शिल्पलेखा, शिल्पसंग्रह, शिल्पदीपिका, शिल्पदीपक, शिल्पविषय।
कश्यपशिल्प, हनुमच्छिल्प, नारायणशिल्प, वशिष्ठशिल्प कल्प, सृष्टि, आन्नेय, भारतीदीप, प्राजापत्य, मार्कण्डेय, शौनक, विश्व, औशनस, ईशान, नग्नजित्, ब्राम्हीय, वाल्मीकि, वज्र, विश्वकर्मीय, प्रबोध, भारद्वाज, मय, अनिरुद्ध, कुमार, पाणिनि, बृहस्पति, वसुदेव, चित्रकर्म, ऋषिमय, सनत्कुमार, सारस्वत, भास्करीय, विश्वकर्म, शत्रुघ्नीय।
गौर्यागम, पंचरात्रागम, कुमारागम, अंशुमानभेदकागम, गुंजकल्प, धातुकल्प, नक्षत्रकल्प, द्रुमवर्णकल्प, युक्तिकल्पतरु, प्रसादकल्प, गौतममत, भोजमत, सौर, मयमत, कार्य, नारदीय, चित्रशाल, महाविश्वकर्मीय, कापिल, कालापक, आग्नियं, गोपासमं, ब्राह्मीय, बृहस्पतीयं.
इस प्रकार केवल वास्तुशास्त्र विषयक करीब 125 ग्रंथों के नाम स्व. रावबहादुर श्री. वझेजी ने उपलब्ध किए हैं। इसके अतिरिक्त यंत्रविद्या विषयक ग्रंथो की नामावली:विमानशास्त्र :- अग्नियान, विमानचन्द्रिका, व्योमयानतंत्र, यंत्रकल्प, यानबिंदु, खेटयानप्रदीपिका, व्योमयानार्कप्रकाश, वैमानिकप्रकरण। नौकाशास्त्र ग्रंथ :- अब्धियान, जलयानज्ञान, यज्ञांगग्रंथसिंधु, पंचाशत्कुण्डमण्डपनिर्णय, वास्तूटजविधि। देवालयशास्त्र ग्रंथ :- केसरीराज, राजप्रासादमंडन, प्रासादकल्प, प्रासादकीर्तन, प्रासादकेसरी, प्रासादलक्षण, प्रसाददीपिका, प्रासादालंकार, प्रासादविचार, प्रासादनिर्णय, राजगृहनिर्माण, केसरीवास्तु। यंत्रशास्त्र विषयक ग्रंथ :- यंत्रार्णव, शिल्पसंहिता (अध्याय 18), यंत्रचिंतामणि, यंत्रसर्वस्व, यत्राधिकार, सूर्यसिद्धांत और सिद्धांतशिरोमणि इ.। खनिशाग्रंथ :- रत्नपरीक्षा, लोहवर्णन, धातुकल्प, लोहप्रदीप, महावज्र, भैरवतंत्र और पाषाणविचार इ.। तंत्रविद्याग्रंथ :- तंत्रसमुच्चय, महातंत्र, तत्त्वमाला । रसविद्याग्रंथ :-रसरत्नसमुच्चय, शाङ्गधर।। प्राकारशास्त्रग्रंथ :- युद्धजयार्णव, बाणस्थापननिर्णय, समरांगण-सूत्रधार, विधातृमित्र, धनुर्वेद, जामदग्न्यधनुर्वेद, भारद्वाज, धनुर्वेद, कोदण्डमण्डन। नगररचनाशास्त्र ग्रंथ :-मयमत, युक्तिकल्पतरु । वृक्षविद्याग्रंथ :-द्रुमवर्णकल्प, वृक्षायुर्वेद, नाकुल, शालिहोत्र । पशुविद्याग्रंथ :- हस्त्यायुर्वेद, नाकुल, शालिहोत्र । संकीर्णग्रंथ :- आदिसार, मानवसूत्र, विशालाक्ष, विश्वकर्माविद्या, प्रतिष्ठासारसंग्रह, ज्ञानरत्नकोष, नामसंगीत, विश्वसार, मयदीपिका,
आदितत्त्व, आर्यादिलक्षण, विश्वकर्मप्रकाश, प्रबोधक, विश्वकर्म-सिद्धांत, महासार, मानसार, विश्वसारोद्धार, अपराजितपृच्छा, ज्ञानप्रकाशदीपावली, विस्तारक, मनुसार, मंजुश्रीसाधन, विश्वधर्म, उद्धारधोरणी, मयजय, मयसंग्रह, कामिकादीप्ति, रत्नावलीसार, पद्यतंत्रक्रिया, मनःशिल्प, मयविद्याप्रकाश, विश्वकर्मरहस्य, क्षीरार्णवविराव, सूत्रधार, सूत्रसंतान, क्षीरार्णवकारिका, हेमाद्रिप्रतिष्ठामूलस्तम्भनिर्णय, मयमाया, सकलधिकार, क्षीरार्णव, मयरत्नप्रयोगमंजरी, प्रयोगसंहिता शिल्परत्न, श्रीकलानिधि, शिवगुह-देवपद्धति ज्ञानरत्नकोष, गोविन्दकलानिधि, ज्ञानसार पराजित, ज्ञानकारिका, मातंगलीला चक्रावलीसंग्रह, भद्रमार्तण्डप्रकाश, विश्वकर्मप्रकाश, आर्यतत्त्व इत्यादि ।
भारतीय शिल्पकला विषयक इन अप्रकाशित ग्रंथों की यह प्रदीर्घ तालिका यही बतलाती है कि हमारे पूर्वज इस भौतिक विद्या में भी अग्रसर थे। इन अप्रकाशित ग्रंथों का गवेषण तथा प्रकाशन करने का कार्य केवल शासकीय सहायता से ही हो सकता है। स्वतंत्र भारत में बडे बडे शिल्पशास्त्र के महाविद्यालयों का अब निर्माण हुआ है और उनमें शोधकार्य भी हो रहा है। परंतु हमारे आधुनकि वास्तुशास्त्रज्ञ और शिल्पशास्त्रज्ञ अगर संस्कृत का अध्ययन करेंगे तो ही उनके द्वारा भारत की इस प्राचीन प्रगत विद्या का परिचय कराने का कार्य हो सकता है। इंजिनिअर लोग संस्कृत नहीं जानते और संस्कृततज्ञ लोग इंजिनिअरिंग नहीं जानते इस कारण यह अनवस्था निर्माण हुई है।
70/ संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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