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गीतगोविंद का प्रेरणा स्थान कृष्णलीला है, जिसका उत्कट और उदात्त रसमय स्वरूप श्रीमद्भागवत के दशमस्कन्ध में दिखाई देता है। इस स्कन्ध में वेणुगीत, गोपीगीत, युगलगीत, महिषीगीत, भ्रमरगीत, जैसे अप्रतिम गीतकाव्य हैं। इनका रसमाधुर्य अलौकिक है। जयदेव जैसे कृष्णभक्त को श्रीमद्भागवत के इन गीतकाव्यों से तथा "रासपंचाध्यायी" जैसे विप्रलंभ शृंगार रसमय काव्य से प्रेरणा मिलने के कारण उनकी कृष्णभक्ति गीतगोविंद के स्वरूप में मुखरित हुई। इस दृष्टि से श्रीमद्भागवत के विविध 'गीत' ही गीतिकाव्य के मूलस्रोत मानना उचित होगा। परंतु गीतगोविंद की "राग-ताल योजना" तथा उसकी अपूर्व मधुरिमा का
अनुकरण करने वाले कवियों की प्रदीर्घ परंपरा संस्कृत साहित्यिकों में हुई, इस कारण गीतिकाव्य के प्रवर्तकत्व का बहुमान उन्हींको दिया जाता है। कुछ उल्लेखनीय गीतिकाव्य :गीतराघवम् :- ले. प्रभाकर, (2) हरिशंकर, (3) रामकवि, गीतगंगाधरम् :- ले. कल्याणकवि, (2) नंजराजशेखर, (3) चंद्रशेखर सरस्वती। गीतशंकरम-ले-मृत्युंजय अनंत नारायण । गीतदिगम्बरम् :- ले- रामचंद्रसुत वंशमणि। गीतगौरीपति :- ले-भानुदास। संगीतमाधवम्-ले-गोविंददास। संगीतरघुनन्दनम् :- ले-प्रियदास, (2) विश्वनाथ । संगीतराघवम् :- ले-चिन्ना बोम्मभूपाल। संगीतसुंदरम् :- ले-सदाशिव दीक्षित । गीतवीतरागप्रबन्ध :- ले. अभिनवचारुकीर्ति । गीतशतकम् :- ले- सुन्दराचार्य। शिवगीतमालिका :- ले-चण्डशिखामणि। गानामृततरंगिणी :- ले-टी.नरसिंह अय्यंगार। (या कल्किसिंह)। शंकरसंगीतम् :- ले-जयनारायण । शिवगीतमालिका :- ले-चन्द्रशेखर सरस्वती (आप कांची कामकोटी शांकर पीठ के 63 वें आचार्य थे)। शहाजिविलासगीतम् :- ले-ढुण्डिराज। कृष्णलीलातरंगिणी :- ले-नारायणतीर्थ (2) बेल्लंकोण्ड रामराय। कृष्णभावनामृतम् :- ले-विश्वनाथ । कृष्णामृत तरंगिका-ले-वेंकटेश। तीर्थभारतम् :- ले-श्रीधर भास्कर वर्णेकर। श्रीरामसंगीतिका :- ले-श्री.भा.वर्णेकर। श्रीकृष्णसंगीतिका- ले.श्री.भा.वर्णेकर, (प्रस्तुत कोश के संपादक) गीतिकाव्यों के आधुनिक लेखकों में पदुकोट्टा के प्राध्यापक सुब्रह्मण्यसूरि ने रामावतारम्, विश्वामित्रयागम्, सीताकल्याणम्, रुक्मिणीकल्याणम् विभूतिमाहात्म्यम्, हल्लीश-मंजरी, दोलागीतानि इत्यादि गीतिकाव्य लिखे हैं। महाराष्ट्र के राम जोशी ने संस्कृत-मराठी संवादात्मक द्वैभाषिक गीतकाव्य लिखे हैं। जयपुर के भट्टश्री मथुरानाथशास्त्री (मंजुनाथ) ने अपने साहित्यवैभवम्, में रेलशकटि (रेलगाडी), वायुयान, अब्धियान (जहाज) ट्रामवे जैसे लौकिक विषयों पर विविध प्रकार के गीतिकाव्य लिखे हैं। कोचीन के वारवूर कृष्ण मेनन ने गाथाकादम्बरी नामक कादम्बरी का गेय रूपांतर रचा है। वेंकटरमणार्य ने अपने कमलाविजयम् नाटक में श्री, स्त्री, सुधी, कन्या, पंक्ति, शशिवदना, विद्युल्लेखा, कुमारललिता इत्यादि अभिनव गेयकाव्यों के लक्षणों की चर्चा की है। गुजरात में गरबा नृत्य की प्रथा लोकप्रिय है। उस नृत्य के योग्य संस्कृतगीतों का संग्रह चांदोद के संस्कृतभाषा प्रचार मंडल ने प्रसिद्ध किया है। आधुनिक संस्कृत कवियों में गीति काव्य रचना की प्रवृत्ति अधिक मात्रा में दिखाई देती है। संस्कृत की मासिक पत्रिकाओं में आज कल वृत्तबद्ध काव्यों की अपेक्षा गीतिकाव्य अधिक प्रकाशित होते हैं।
6 "दूतकाव्य" महाकवि कालिदास की प्रत्येक काव्यकृति की यह अपूर्वता है कि वह स्वसदृश काव्य तथा नाट्य प्रणाली की प्रवर्तक हुई है। कालिदास की प्रत्येक काव्यकृति तथा नाट्यकृति को आदर्श मानते हुए अनेक कवियों ने अपनी प्रतिभा शक्ति का विनियोग किया और तदनुसार महाकाव्यों तथा नाटकों की रचना की। उनमें कालिदास का मेघदूत यह खण्डकाव्य भी एक युगप्रवर्तक कलाकृति हुई जिसके प्रभाव के कारण संस्कृत साहित्य क्षेत्र में दूतकाव्यों की पृथक् परंपरा प्रचलित हुई।
वस्तुतः दूतकाव्यों की परंपरा का मूल ऋग्वेद के दशम मण्डलस्थ-108 वें सूक्त में मिलता है; जिसमें सरमा नामक देव-शुनी को पणियों पास दूतकर्म के लिये भेजा गया है। रामायणकार आदिकवि वाल्मीकि ने हनुमान् का दूतकर्म अत्यंत
248 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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