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तालशास्त्र पर तालदीपिका नामक ग्रंथ और भरत के नाट्यशास्त्र भट्टनायक - ई. 10 वीं शती। काव्य-शास्त्र के आचार्य । के कुछ अंशों पर टीका लिखी है।
"राजतरांगणी' में उल्लेखित भट्टनायक से भिन्न । "हृदय-दर्पण" भट्ट गोविंदस्वामी - ऐतरेय ब्राह्मण के भाष्यकार । समय-संभवतः नामक (अनुपलब्ध) ग्रंथ के प्रणेता। इनके मत, अभिनवभारती, नवम शताब्दी से पूर्व। देवग्रन्थ की पुरुषकार व्याख्या के कर्ता व्यक्ति-विवेक, काव्य-प्रकाश, काव्यानुशासन माणिक्यचंद्र-कृत श्रीकृष्ण-लीलाशुक मुनि, और मेधातिथि (अनुक्रमतः) स्पष्ट काव्यप्रकाश की संकेत-टीका में उद्धत हैं। भट्टनायक ने रूप से और अस्पष्ट रूप से भट्ट गोविन्द स्वामी का निर्देश भरतकृत "नाट्यशास्त्र" की भी टीका लिखी थी। भरत मुनि करते हैं। गोविन्द स्वामी ने संभवतः बोधायन धर्मसूत्र पर भी के रस-सूत्र के तृतीय व्याख्याता के रूप में भट्टनायक का बोधायनीय धर्मविवरण लिखा होगा।
नाम काव्यप्रकाश में आता है। इन्होंने रसविवेचन के क्षेत्र में भट्ट तौत - अभिनवगुप्ताचार्य के गुरु। “काव्यकौतुक" नामक
"साधारणीकरण" के सिद्धांत का प्रतिपादन कर भारतीय काव्य काव्य-शास्त्रविषयक ग्रंथ के प्रणेता। इस ग्रंथ में इन्होंने शांतरस शास्त्र के इतिहास में युग-प्रवर्तन किया है। को सर्वश्रेष्ठ रस सिद्ध किया है। "अभिनवभारती' के अनेक इनका समय ई. 9 वीं शती का अंतिम चरण या 10 वीं स्थलों में अभिनवगुप्त ने भट्ट तौत के मत को "उपाध्यायाः" शती का प्रथम चरण है। इनके रसविषयक सिद्धांत को या "गुरवः" के रूप में उद्धृत किया है। उनके उल्लेख से भुक्तिवाद कहते हैं। तदनुसार न तो रस की उत्पत्ति होती है विदित होता है कि भट्ट तौत ने नाट्य-शास्त्र की टीका भी और न अनुमिति, अपि तु भुक्ति होती है। इन्होंने रस की लिखी थी। भद्र तौत का रचना काल 950 ई. से 980 के स्थिति सामाजिकगत मानी है। भट्टनायक के अनुसार शब्द बीच माना जाता है। मोक्षप्रद होने के कारण, इनके मतानुसार, की तीन व्यापार हैं- अभिधा, भावकत्व व भोजकत्व । भोजकत्व शांतरस सभी रसों में श्रेष्ठ है।
नामक ततीय व्यापार के द्वारा रस का साक्षात्कार होता है। अभिनवगुप्त ने इनका स्मरण “अभिनवभारती" तथा इसी को भट्टनायक "भुक्तिवाद" कहते हैं। भोजकत्व की "ध्वन्यालोक-लोचन" में श्रद्धापूर्वक किया है। नाट्यशास्त्र-विषयक स्थिति, रस के भोग करने की होती है। इस स्थिति में दर्शक इनकी गंभीर मान्यताएं भी उद्धत की गई हैं। शान्त रस के के हृदय के राजस व तामस भाव सर्वथा तिरोहित हो जाते विवरण को मूल पाठ की मान्यता देना, रस की अनुकरणशीलता
हैं और (उन्हें दबा कर) सत्त्वगुण का उद्रेक हो जाता है। का विरोध, काव्य एवं नाट्य में रस-प्रतिपादन आदि विषयों
भट्टनायक ध्वनि-विरोधी आचार्य हैं। इन्होंने अपने "हृदय-दर्पण' पर, इनके अपने सिद्धान्त हैं। अपने समय के वे प्रख्यात
नामक ग्रंथ की रचना ध्वनि के खंडन के लिये ही की थी। नाट्यशास्त्रीय व्याख्याता- आचार्य माने जाते थे। इनके
"ध्वन्यालोकलोचन" में भट्टनायक के मत अनेक स्थानों पर "काव्यकौतुक" पर अभिनवगुप्त ने विवरण भी लिखा था। बिखरे हुए हैं। उनसे पता चलता है कि इन्होंने ध्वनि-सिद्धांत दुर्भाग्य से ये दोनों ग्रंथ अप्राप्य है। हेमचन्द्र ने "काव्यकौतुक" । का खंडन, बडी ही सूक्ष्मता के साथ किया है। ये काश्मीर-निवासी से तीन पद्य उद्धृत किये है। इससे इस ग्रंथ के अस्तित्व को
थे। इनके "हृदय-दर्पण' का उल्लेख महिमभट्ट कृत प्रामाणिक आधार मिलता है। भट्ट तौत का समय 10 वीं
___ "व्यक्ति-विवेक" में भी है। शती का पूर्वार्ध रहा होगा, क्योंकि अभिनव गुप्त का काल भट्टनायक, नाट्यशास्त्र के भी प्रमुख व्याख्याता हैं। अभिनवगुप्त 10 वीं शती के उत्तरार्ध से 11 वीं शती के पूर्वार्ध तक। ने छः स्थानों पर इनका उल्लेख किया है। जयरथ, माहिमभट्ट माना जाता है।
तथा रुय्यक ने भी इनका उल्लेख किया है। ये ध्वनि-सिद्धान्त अभिनवगुप्त ने अपने व्याख्यान सन्दर्भो में कीर्तिधर,
के विरोधी आचार्य थे। काश्मीर के राजा अवन्तिवर्मा (855-884 भट्टगोपाल, भागुरि, प्रियातिथि, भट्टशंकर आदि आचार्यों का ई.) इनके आश्रयदाता थे। अतः संभव है कि ये आनन्दवर्धन भी उल्लेख किया है परन्तु इनके विषय में अधिक जानकारी नहीं है। के समकालीन रहे हों। रसशास्त्र के व्याख्यान-क्रम में साधारणीकरण रसनिष्पत्ति की प्रक्रिया का विवेचन, भट्ट तौत ने इस प्रकार
के उद्भावक तथा भुक्तिवाद के प्रवर्तक रूप में आप प्रसिद्ध हैं। किया है :- "काव्य का विषय श्रोता के आत्मसात् होने पर भट्टनारायण - ई. 7 वीं शती का उत्तरार्ध । ब्राह्मण-कुल। वह प्रत्यक्ष होने की संवेदना होती है तथा उसमें रसनिष्पत्ति शांडिल्य गोत्र। कन्नौज से बंगाल जा बसे। "वेणी-संहार" होती है। इस पर शंकुक द्वारा उठाये गये आक्षेपों का भट्ट नामक नाटक के प्रणेता। इनके जीवन का पूर्ण विवरण प्राप्त तौत ने निवारण किया है।
नहीं होता। इनकी एकमात्र कृति "वेणीसंहार" उपलब्ध होती क्षेमेंद्र, हेमचंद्र, सोमेश्वर आदि संस्कृत साहित्यकार, भट्ट है। इनका दूसरा नाम (या उपाधि) "मृगराजलक्ष्म" था। एक तौत के मतों का अपने-अपने ग्रंथों में उल्लेख करते हैं। अनुश्रुति के अनुसार वंगराज आदिशूर द्वारा गौड देश में अभिनवगुप्त के विचारों पर भट्ट तौत के मतों का प्रभाव आर्य-धर्म की प्रतिष्ठा कराने के लिये बुलाये गये पांच ब्राह्मणों परिलक्षित होता है।
में भट्टनारायण भी थे। राजा ने इन्हें नाम मात्र मूल्य पर कुछ
386 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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