Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 507
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir हणमंते, रघुनाथपंत - स्वराज्य संस्थापना के पश्चात् शिवाजी इसके अतिरिक्त इनके नाम पर शृंगारकलिका और महाराज ने प्रादेशिक मराठी भाषा की, जिसका स्वरूप यावनी 'सुभाषित-हारावली' नामक एक संकलन भी प्राप्त होता है। शब्दों के मिश्रण से विकृत हो गया था, शुद्धि की आकांक्षा हरिचंद्र · (1) ई 11 वीं शती के जैन कवि। पिता-आदिदेव । की। एतदर्थ राज्य-कार्य में व्यवहृत भाषा संस्कृतनिष्ठ तथा माता- रथ्या । जाति-कायस्थ । उपनाम- चन्द्र । इन्होंने धर्मशर्माभ्युदय शुद्ध करने के हेतु इन्हें नियुक्त किया तथा इनसे कोश-निर्मिति नामक 21 सर्गो वाले एक महाकाव्य की रचना की। इसमें करवाई। इस 'राज्य-व्यवहार- कोश' नामक रचना में उर्दू-फारसी इन्होंने जैनियों के पंद्रहवें तीर्थकर धर्मनाथ का चरित्र चित्रण में व्यवहृत शब्दों के संस्कृत समानार्थी शब्द हैं। इस प्रयास किया है। डा. हीरालाल जैन के मतानुसार यह काव्य माघ में पं. रघुनाथ शास्त्री का संभवतः उपहास हुआ था। उन्होंने के शिशुपाल-वध नामक महाकाव्य का अनुकरण है, जब कि उपहास करने वाले लोगों को मधुरकदली फल का स्वाद न डा. चन्द्रिकाप्रसाद शुक्ल के मतानुसार श्री हर्ष के नैषधीयचरित समझने वाले क्रमेलक (ऊंट) की उपमा दी है। पर उक्त महाकाव्य का काफी प्रभाव है। इनकी दूसरी रचना हम्मीर - संभवतः मेवाडनरेश कुम्भकर्ण के पूर्वज । कृति-शाङ्गदेव है- जीवंधरचंपू । बाणभट्ट, राजशेखर प्रभृति द्वारा उल्लिखित । के संगीत-रत्नाकर पर संगीत- शृंगारहार नामक टीका। मृत्यु (2) चरकन्यास नामक टीका ग्रंथ के लेखक। ई. 4 थी ई. 1394 में। शती। कुछ विद्वानों के अनुसार ये साहसांक राजा याने चन्द्रगुप्त हरदत्त मिश्र - “पदमंजरी" नामक काशिका की प्रौढी और द्वितीय के वैद्य थे। ये विश्वप्रकाश-कोश के रचयिता महेश्वर पाण्डित्यपूर्ण व्याख्या के लेखक। मिश्रजी व्याकरण के अतिरिक्त । के पूर्वज थे। अनेक टीकाकारों ने इनके चरकन्यास का आधार कल्पसूत्र (श्रौत, गृह्य तथा धर्म) के भी व्याख्याकार हैं। लिया है। इन्होंने पं. जगन्नाथ सदृश आत्म-प्रशंसा की है। पिता पद्मकुमार हरिचरण भट्टाचार्य - जन्म ई. 1879 में विक्रमपुर में। (रुद्रकुमार)। माता-श्री। ज्येष्ठ भ्राता- अश्विनकुमार । कलकत्ता के मेट्रोपोलिटन कालेज में प्राध्यापक। कृतियांगुरु-अपराजित। शैवमतानुयायी। द्रविडदेशवासी। समय- 12 कर्णधार तथा रूपनिर्झर काव्य, उमर खय्याम की रूबाईयों का वीं शती। अन्य रचनाएं- महापदमंजरी (यह किस ग्रंथ की संस्कृत भावानुवाद और बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के टीका है यह अज्ञात) परिभाषामंजरी (अप्राप्त), आश्वलायन- 'कपालकुण्डला' (उपन्यास) का संस्कृत-अनुवाद । गृह्यव्याख्या- अनाकुला, गौतम-धर्मसूत्र-व्याख्या मिताक्षरा, हरिजीवन मिश्र - आमेर के राजा रामसिंह (1667-1675 आपस्तम्ब-गृह्य व्याख्या अनाकुला, आपस्तम्ब- धर्मसत्र- व्याख्या। ई.) का समाश्रय प्राप्त । पिता- लाल मिश्र। पितामह- वैद्यनाथ उज्ज्वला, आपस्तम्ब-गृह्यमन्त्र व्याख्या. आपस्तम्ब परिभाषाव्याख्या, मिश्र। कृतियां- विजयपारिजात (नाटक) तथा 6 प्रहसन = एकाग्निकाण्ड-व्याख्या, श्रुतिसूक्तिमाला। सायण और देवराज अद्भुततरंग, प्रासंगिक, पलाण्डुमण्डन, विबुधमोहन, सहृदयानन्द अपने वेदभाष्य में हरदत्त का उल्लेख करते हैं। और धृतकुल्यावली। हरदत्त - पिता- जयशंकर। रचना- राघव-नैषधीयम्। दो सर्गो हरिदत्त शास्त्री (डा) - ई. 20 वीं शती। 'प्रत्याशिपरीक्षण' वाले इस श्लिष्ट काव्य पर इन्होंने टीका भी लिखी है। नामक प्रहसन के प्रणेता। हरदेव उपाध्याय - ई. 20 वीं शती। 'भारतमस्ति भारतम्' हरिदास - पिता- पुरुषोत्तम । ई. 17 वीं शती। रचना- संकलन नामक नाटक के रचयिता। प्रस्तावरत्नाकर। हरपति - ई. 15 वीं शती। ये महाकवि विद्यापति के द्वितीय हरिदास - शान्तिपुर (नदिया, बंगाल) के निवासी। 'कोकिलदूत' पुत्र थे। बिहार के दरभंगा जिले के बिसफी नामक ग्राम के के प्रणेता। निवासी। कुछ विद्वानों के मतानुसार प्रसिद्ध कवयित्री चन्द्रकला हरिदास न्यायालंकार भट्टाचार्य - ई. 16-17 वीं शती । इनकी पत्नी थी। इन्होंने ज्योतिषशास्त्र पर व्यवहारप्रदीपिका तथा वासुदेव सार्वभौम के शिष्य । रचनाएं- न्याय-कुसुमांजलिकारिकादैवज्ञ-बांधव नामक दो ग्रंथ लिखे हैं। व्याख्या, तत्त्वचिन्तामणि- प्रकाश और भाष्यालोक टिप्पणी । हररात - कूष्माण्ड-प्रदीपिका नामक टीका-ग्रंथ के रचयिता। हरिदास सिद्धान्तवागीश (पद्मभूषण) - जन्म अनशिया यह टीका- ग्रंथ उवटादि वेदभाष्यकारों पर आधारित है, ऐसा ग्राम (जिला फरीदपुर) में, सन् 1876 में। मृत्यु दिनांक ग्रंथकार का निवेदन है। ग्रंथ त्रुटित रूप में उपलब्ध है। 25-12-1961 को। मधुसूदन सरस्वती के वंशज। पंद्रह वर्ष हरलाल गुप्त - ई. 19-20 वीं शती । कृति- आयुर्वेद- चन्द्रिका। की अवस्था से लेखन प्रारंभ । नकिपुर नरेश के टोल में हरि कवि - समय- ई. 17 वीं शती। रचना- 'शम्भुराज-चरितम्'। प्राध्यापक। काशी के भारत धर्म महामण्डल से 'महोपदेशक', सूरत-निवासी महाराष्ट्रीय पण्डित। संभाजी (राजा) के मन्त्री भारत शासन द्वारा 'महामहोपाध्याय' तथा निखिल भारत पण्डित कवि कलश के आदेश पर प्रस्तुत चरित्र-काव्य की रचना। महामण्डल द्वारा 'महाकवि' की उपाधियों से विभूषित । रवीन्द्र संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 491 For Private and Personal Use Only

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