Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 512
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ग्रंथकार खंड का परिशिष्ट संपादकीय प्रस्तुत ग्रंथकार खंड का संपादन करते समय जिन ग्रंथकारों के संबंध में संक्षेपतः उल्लेखनीय कुछ विशिष्ट जानकारी संदर्भ ग्रंथों में प्राप्त हुई, उनका निर्देश मूल खंड में यथा स्थान हुआ है। परंतु इस संपादन कार्य में ऐसे अनेक ग्रंथकारों के नाम संकलित हुए, जिनके संबंध में उनकी प्रायः एक दो (या क्वचित् अधिक) रचनाओं के अतिरिक्त विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई। हो सकता है कि इनके संबंध में उनकी प्रादेशिक भाषाओं में अधिक जानकारी मिले। हमने अपने सीमित भाषा ज्ञान के कारण संदर्भ के लिए हिंदी, अंग्रेजी और मराठी ग्रंथों का ही उपयोग किया है। अतः संस्कृत वाङ्मय विषयक अन्य प्रादेशिक भाषाओं के ग्रंथों का लाभ नहीं लिया जा सका। जिन ग्रंथकारों के संबंध में इस प्रकार, उनकी रचना के अतिरिक्त अधिक जानकारी प्राप्त नहीं हुई, उनका निर्देश टालना असंभव और अयोग्य था। अतः ग्रंथकार खंड में उल्लेखनीय ग्रंथकारों के नामों की केवल सूची के रूप में यह परिशिष्ट दिया जा रहा है। ग्रंथकार की रचना के अतिरिक्त कुछ अधिक जानकारी भी प्रयत्नपूर्वक संकलित कर यथास्थान जोडी गई है। अतः अनेक ग्रंथकारों के स्थान तथा समय का निर्देश इस परिशिष्ट में स्थान स्थान पर मिलेगा। ग्रंथकार की रचना का स्वरूप (काव्य, नाटक, चम्पू, प्रबन्ध आदि भी अनेक स्थानों पर उपलब्ध संदर्भ के अनुसार दिया गया है। मूल खंड में उल्लिखित होने पर भी अनेक नामों का परिशिष्ट में भी उल्लेख हुआ है। इसका अर्थ यही समझना चाहिए कि नाम एक होते हुए भी व्यक्ति भिन्न भिन्न हैं। इस परिशिष्ट में उन नामों का निर्देश होने का कारण उन व्यक्तियों के संबंध में रचना के अतिरिक्त अधिक जानकारी संदर्भ ग्रंथों में नहीं मिली। मूल खंड के समान प्रस्तुत परिशिष्ट में भी प्रायः मुद्रित रचनाओं का ही निर्देश हुआ है। इस में अपवादों की भी संभावना है। प्रस्तुत परिशिष्ट में निर्दिष्ट हुए बहुसंख्य ग्रंथों के स्वरूप की कल्पना उनके नामों से ही आ सकती है। अतः उसका पुनरुल्लेख नहीं किया है। शुनकदूतम्, रुक्मिणीपरिणयचम्पू, गीतगंगाधरम् अन्योक्तिशतकम् इत्यादि प्रकार के नामों का विवरण देने की आवश्यकता नहीं। परिशिष्ट में उल्लिखित अनेक ग्रंथों का संक्षेपतः परिचय प्रस्तुत कोश के ग्रंथखंड में मिल सकेगा। प्रस्तुत परिशिष्ट में एक ही लेखक के नाम पर अनेक रचनाओं का निर्देश कई स्थानों पर किया है। उस एक ही नाम के लेखक होने की, उनका स्थान और काल भिन्न भिन्न होने की भी संभावना है। उनकी व्यक्तिशः विशेष जानकारी न मिलने के कारण, एक ही नाम के आगे क्रमशः ग्रन्थों का नाम निर्देश किया है। जैसे कृष्ण- इस नाम के आगे 5 रचनाओं का निर्देश है, परंतु उन पांच रचनाओं के लेखक एक से अधिक होने की संभावना है। ग्रंथ के साथ जहां वर्ष का निर्देश है, वह उस ग्रंथ के लेखन या प्रकाशन का वर्ष समझना चाहिए। अन्यत्र अनुपलब्धि के कारण इस प्रकार निर्देश नहीं हो सके। भारत में व्यक्तियों नाम मात्र से उसके प्रदेश की कल्पना आती है। महाराष्ट्र, बंगाल, केरल, कर्नाटक, एवं उत्तर भारत में व्यक्ति नामों की अपनी अपनी निजी विशेषता है। जिन ग्रंथकारों के प्रदेश का निर्देश, संदर्भ के अभाव से नहीं हुआ, उनके नाम की विशेषता से उनके प्रदेश की कल्पना पाठकों को आ सकती है। कुछ प्रादेशिक नामों के निर्देश में निश्चित उच्चारण के ज्ञानाभाव के कारण वर्णदोष होने की संभावना है। 496 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only

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