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देशीनाममाला, 15) शेषनाममाला, 16) काव्यानुशासन, 17) छन्दोनुशासन, 18) योगशास्त्र अध्यात्मोपनिषद, 1200 श्लोक, 19) वीतरागस्तोत्र, 20) महादेवस्तोत्र, 21) त्रिषष्टिशलाका-पुरुषचरित, 22) परिशिष्ट-पर्व, 23) प्रमाण-मीमांसा, 24) अन्ययोग-वाक्यच्छेद (इसी पर मल्लिषेण सूरि की 3000 श्लोक प्रमाण टीका है जो स्याद्वाद-मंजरी के नाम से प्रसिद्ध है और 25) अर्थांगव्यवच्छेद। आप कलिकालसर्वज्ञ की उपाधि से अलंकृत थे। हेमाद्रि - ई. 13 वीं शती। एक धर्मशास्त्री। इन्हें हेमाडपंत के नाम से महाराष्ट्र में जाना जाता है। पिता-कामदेव। देवगिरि के राजा महादेव के शासन-काल में, इन्हें मंत्रिचूडामणि व करणधिप ये दो उपाधियां मिली थीं। इन्होंने "चतुर्वर्गचिंतामणि" नामक ग्रंथ लिखा जो धर्म की अनेक शाखाओं का एक ज्ञानकोश ही हैं। इसमें व्रत, दान, तीर्थ और मोक्ष ये चार विभाग है। परिशेष नामक पांचवां खंड भी है। इस पांचवें खण्ड में उपास्य देवता, उनकी पूजाविधि, श्राद्धविधि, नित्यनैमित्तिक कर्म के मुहूर्त, प्रायश्चित्त विधि तथा पापनाशन के साधनों की जानकारी दी गयी है।
इसके अतिरिक्त आपने कालनिर्णय, कालनिर्णयसंक्षेप, तिथिनिर्णय, कैवल्यदीपिका, आयुर्वेदरसायन, दानवाक्यावली, पर्जन्यप्रयोग, प्रतिष्ठालक्षणसमुच्चय, हेमाद्रिनिबंध, त्रिस्थलविधि, अर्थकाण्ड, हरिलीला आदि अनेक छोटे-बड़े ग्रंथों की रचना की है। इनके व्रतखंड को आज भी प्रमाणभूत ग्रंथ माना जाता है। ये शिल्पकार भी थे। इनके नाम पर "हेमाडपंती" नामक एक शिल्पपद्धति महाराष्ट्र में चल पडी है। हेर्लेकर, पुरुषोत्तम सखाराम - अमरावती (विदर्भ) के निवासी उत्तम वैद्य। भारतीय आयुर्विद्या शिक्षण समिति के कार्याध्यक्ष थे। रचना-शारीरं तत्त्वदर्शनम् (वातादिदोषज्ञानम्) । अनुष्टुप छन्दोबद्ध। मूलश्लोक सन् 1930 के पूर्व रचित । ग्रंथ-प्रस्तुति सन् 1942 में, वैद्य सम्मेलन के मैसूर अधिविशन में सुवर्ण-पदक तथा प्रशस्ति-पत्रक से सम्मानित।। होता वेंकटरामशास्त्री पंडित - ई. 20 वीं शती। पिता-वेंकटेश्वर । माता-सुभद्रा। अमलापुरम (जिला-गोदावरी) के कुचिमंचिवरि अग्रहार के निवासी रामभक्त। "पौराणिकाग्रेसर'की उपाधि से विभूषित। “सीताकल्याण" नामक नाटक के रचयिता ।
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 495
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