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शक (= 1704 ई.)। एक प्राचीन ग्रंथ में इनका प्रकट-काल शकाब्द 1565 से लेकर 1652 शक है। यदि यह निर्देश प्रामाणिक हो, तो विश्वनाथजी 87 वर्षों तक जीवित रहे। जो कुछ भी हो, किंतु इनकी भागवत-टीका, इनकी प्रौढ अवस्था की रचना अवश्य है। फलतः इनका स्थितिकाल, ई. 17 वीं सदी का उत्तरार्ध एवं 18 वीं सदी का प्रथम चरण मानना उचित प्रतीत होता है।
इनकी भागवत की टीका का नाम है- सारार्थ-दर्शिनी।। बलदेव विद्याभूषण इनके पट्ट शिष्य थे जिन्होंने वैष्णवानंदिनी नामक भागवत-टीका का प्रणयन किया। अन्य कृतियां- श्रीकृष्ण-भावनामृत, निकुंज-केलिबिरुदावली, गौरांग-लीलामृत, च चमत्कार-चन्द्रिका, आनन्द-चन्द्रिका नामक टीका (उज्ज्वल-नीलमणि पर) तथा अलंकारकौस्तुभ पर सारबोधिनी नामक टीका। विश्वनाथ पंचानन (भट्टाचार्य) - समय ई. 17 वीं शती। वैशोषिक दर्शन के प्रसिद्ध वंगदेशीय आचार्य । नवद्वीप (बंगाल) के नव्यन्याय-प्रवर्तक रघुनाथ शिरोमणि के गुरु वासुदेव सार्वभौम के अनुज रत्नाकर विद्यावाचस्पति के पौत्र। पिता-काशीनाथ विद्यानिवास, जो अपने समय के प्रसिद्ध विद्वान् थे। विश्वनाथ पंचानन ने न्यायवैशोषिक पर दो ग्रंथों की रचना की है; भाषापरिच्छेद व न्यायसूत्रवृत्ति। भाषापरिच्छेद, वैशेषिक दर्शन का अत्यधिक लोकप्रिय ग्रंथ है। "भाषापरिच्छेद" पर दिनकरी, रामरुद्री, मंजूषा आदि टीकाएं प्रसिद्ध हैं। "न्यायसूत्रवृत्ति" की रचना 1631 ई. हुई थी। इसमें न्यायसूत्रों की सरल व्याख्या प्रस्तुत की गई है।
अन्य रचनाएं- अलंकारपरिष्कार, नवाद - टीका, पदार्थ-तत्त्वालोक, न्यायतंत्रबोधिनी, सुबर्थतत्त्वालोक (व्याकरणशास्त्र) और पिंगलप्रकाश (छंदःशास्त्र) । विश्वनाथ मिश्र - ई. की 20 वीं शती। एम.ए. तथा आचार्य । पूर्वी उ.प्र. के निवासी। शार्दूल विद्यापीठ (बीकानेर) में प्राचार्य। कृतियां- कलिकौतुक, वामनविजय (एकांकी) तथा कविसम्मेलन (बालोचित लघु प्रहसन)। विश्वनाथ सत्यनारायण (पद्मभूषण) - समय- ई. 20 वीं शती। जन्म नन्दमुरू ग्राम। जिला कृष्णा, आन्ध्र प्रदेश में । पिता- विश्वनाथ शोभनाद्रि । शिक्षा-एम.ए. साहित्यशास्त्र आचार्य । तेलगु में रचिंत "श्रीरामायण-कल्पवृक्ष" पर ज्ञानपीठ पुरस्कार । इनके "वेयि पदगल्लु' उपन्यास पर मद्रास वि.वि. द्वारा पुरस्कार । "कवि-सम्राट' की उपाधि से अलंकृत। आन्ध्र प्रदेश शासन के आजीवन राजकवि। गुण्टूर में प्रथम तेलगु पण्डित, बाद में व्याख्याता। अन्त में करीमनगर महाविद्यालय के प्राचार्य। “पद्मभूषण' की उपाधि से विभूषित ।
कृतियां- गुप्तपाशुपत तथा अमृतशर्मिष्ठा नामक दो संस्कृत नाटक। तमिल में इनकी शताधिक रचनाएं हैं।
विश्वनाथ सिद्धान्तपंचानन - ई. 18 वीं शती। विद्यानिवास भट्टाचार्य के पुत्र। बंगालनिवासी। सूक्ति-मुक्तावली नामक सुभाषित-संग्रह के कर्ता। विश्वनाथसिंह - बघेल वंशीय रीवा-नरेश। 19 वीं शती। रचना-रामचन्द्राह्निकम् (सटीक)। विश्वमनस् वैयश्व - ऋग्वेद के आठवें मंडल के 23 से 26 तक के चार सूक्तों की रचना इनके नाम है। व्यश्व के पुत्र होने के कारण वैयश्व यह नाम पैतृक रूप से मिला। ये इन्द्र के मित्र हैं। इन्होंने धनप्राप्ति के लिये वरोसुषामन् से प्रार्थना की है किन्तु सयाणाचार्य के मतानुसार वरोसुषामन् किसी व्यक्ति का नाम नहीं।
अपने उक्त चार सूक्तों में इन्होंने क्रमशः अग्नि, इन्द्र, मित्रवरुण व अश्विनौ की स्तुति की है। 24 वें सूक्त में इन्होंने कहा है कि मनुष्य के शरीर में 9 प्राण और 10 वां आत्मारूपी इन्द्र वास करते हैं। सप्तसिन्धु प्रदेश का उल्लेख भी इसी सूक्त में है। विश्ववारा - एक वैदिक सूक्तद्रष्टा। ऋग्वेद के पांचवे मंडल का 28 वां सूक्त इनके नाम पर है। सूक्त में अग्नि की महिमा गायी है। विश्वसामन् आत्रेय - एक सूक्तद्रष्टा । अत्रिकुल में उत्पन्न होने के कारण आत्रेय कहा गया है। ऋग्वेद के पांचवे मंडल के 22 वें सूक्त के द्रष्टा। सूक्त का विषय है अग्निस्तुति। विश्वामित्र - ऋग्वेद के तीसरे मंडल के द्रष्टा । इनका जीवन चरित्र बडा अद्भुत रहा है। वर्षानुवर्ष कठोर तपश्चर्या करने वाले, त्रिशंकु को सदेह वर्ग भेजने की जिद करने वाले, प्रतिसृष्टि निर्माण करने वाले, बलि चढाने के लिये लाये गये शुनःशेप को मुक्त कर अपनी गोद में बिठाने वाले, वसिष्ठ के शतपुत्रों की हत्या करने वाले, दक्षिणा के लिये हरिश्चन्द्र-तारामती को सताने वाले, ऐसे नानाविध रूपों में विश्वामित्र का जीवन-चित्र प्रस्तुत किया जाता है। इनमें से कुछ घटनाएं वैदिक तथा कुछ पौराणिक हैं। वेदों में उपलब्ध जानकारी के अनुसार विश्वामित्र का जन्म क्षत्रियकुल में कान्यकुब्ज (कनोज) देश में हुआ। ये अमावसु-वंश के कुशिक राजा के पोते तथा गाथी के पुत्र थे। इनका जन्म नाम विश्वरथ था। जब ये क्षत्रिय से ब्राह्मण बने तब इन्हें “विश्वामित्र" कहा जाने लगा।
सुदास् राजा ने जब वसिष्ठ के स्थान पर इन्हें राजपुरोहित बनाया तो वसिष्ठ ने इसे अपना अपमान समझा और उसी दिन से वसिष्ठ और विश्वामित्र के बीच वैमनस्य पैदा हो गया। वसिष्ठ के पुत्र शक्ति ने पिता के अपमान का बदला लेने की ठानी और सुदास द्वारा आयोजित यज्ञा-प्रसंग पर हुए वादविवाद में शक्ति ने विश्वामित्र को पराजित किया, किन्तु विश्वामित्र ने जमदग्नि से प्राप्त ससर्परी-विद्या का सहारा लेकर
454 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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