Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 491
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org माता - भागीरथी । आन्ध्र प्रदेश के रालपल्ली के निवासी। गैसूर नरेश कृष्णराज द्वितीय (1734-1766 ई.) के अध्यापक । कल्पनाकल्पक नाटक तथा शारदातिलक भाण के रचयिता । शेषनारायण - समय- वि.सं. 1500 से 1550 । पिता - वासुदेव, पितामह - अनन्त, पुत्र-कृष्णसूरि सूक्तिरत्नाकर नामक महाभाष्य की प्रौढ व्याख्या के लेखक । अनेक अप्रकाशित हस्तलेख उपलब्ध । इस शेष वंश में अनेक प्रथितयश वैयाकरण हुए। शेष विष्णु समय वि.सं. 1600-16501 शेषवंशीय । महाभाष्य प्रकाशिका के लेखक । शेषनारायण के प्रपौत्र 1 पिता - महादेव सूरि । शेषाचलपति (आन्ध्रपाणिनि) रचना-कोसलभोसलीयम् (द्वयर्थी काव्य) । इसमें कोसल-वंशीय रामचंद्र तथा भोसलवंशीय शाहजी के पुत्र एकोजी का चरित्र संगुफित है। शाहजी ने इनका कनकाभिषेक से सत्कार किया था। ये शाहजी के आश्रित कवि थे। - शेषाचार्य पिता संकर्षण। "सत्यनाथाभ्युदयम्” नामक काव्य के रचयिता । काव्य के चरित्रनायक सत्यनाथतीर्थ माध्वसंप्रदाय के द्वैतसिद्धान्ती आचार्य थे। देहान्त सन् 1674 में। शैल कवि 17 वीं शताब्दी। तंजावर नरेश के मन्त्री, आनन्द यज्वा का पुत्र । रचना- त्रिपुर- विजय- चम्पूः । शोभाकर मित्र - ई. 13 वीं सदी। पिता- त्रयीश्वर । संभवतः काश्मीर निवासी। आपके "अलंकाररत्नाकर" ग्रंथ में एक सौ बारह गद्य सूत्र और उन पर सोदाहरण वृत्ति है। ग्रंथ में 107 अलंकारों का निरूपण है। चारुता एवं प्रतीतिभेद पर ही विवेचन है आपने अनेक पुराने अलंकार अमान्य कर, 39 नये अलंकार प्रस्तुत किये हैं। वे शास्त्र पर आधारित होने से, इस ग्रंथ का महत्त्व है । " शोभाकर भट्ट ई. 14 वीं शती। इन के ग्रंथ का नाम "आरण्यक - विवरण" है। आरण्यक विवरण ग्रंथ का निर्माण होने के पहले उनकी कुछ भाष्य-रचना भी हो सकती है। नारदीय शिक्षा-विवरण नामक टीका ग्रंथ भी आचार्य शोभाकर ने लिखा है। शौनक अनेक व्यक्तियों का कुलनाम। ऋग्वेद के दूसरे मंडल के कर्ता गृत्समद शौनक थे। शतपथ ब्राह्मण के इंद्रोत व स्वैदायन शौनक थे। बृहदारण्यक के अनुसार रौहिणायन के गुरु शौनक थे। अनेक पुराणों में उल्लिखित भृगुकुल के मंत्रकार शौनक ही है ये कुलपति वेदार्थशास्त्रज्ञ थे। शौनकगृह्यसूत्र, शौनकगृह्य परिशिष्ट और वास्तुशास्त्र पर भी आपने एक ग्रंथ लिखा है। ऐतरेय आरण्यक का पांचवां आरण्यक आपकी रचना मानी जाती है। आश्वलायन आपके प्रमुख शिष्य थे। पुराणों से पता चलता है कि आपने अनेक यज्ञ एवं सूत्र किये। परीक्षित के पुत्र शातनीक को तत्त्वज्ञान का उपदेश आप ही ने दिया। आपने युधिष्ठिर को धर्मोपदेश दिया था। महाभारत में शौनक को योगशास्त्रज्ञ एवं सांख्य-निपुण कहकर गौरवान्वित किया गया है। अनेक पुराणों में उन्हें प्राप्त उपाधियां है- क्षेत्रोपेत द्विज, मंत्रकृत्, मध्यमाध्वर्यु, कुलपति । आपने ऋग्वेद अनुक्रमणिका अप्रातिशाक्य, वृहदेवता शौनकस्मृति, चरणव्यूह, ऋविधान, ऋग्वेदकथानुक्रमणी आदि ग्रंथों की रचना की है। वैद्यक शास्त्र की शल्यतंत्र शाखा के जनक आप ही हैं। आपने ऋग्वेद की दो शाखाओं (शाकल एवं बाष्कल) का एकत्रीकरण किया है। ऋग्वेद की उपलब्ध अनुक्रमणिका में आपकी अनुक्रमणी प्राचीन मानी जाती है। उसमें ऋग्वेद का मंडल, अनुवाक, सूक्त इस भांति विभाजन है। ऋप्रातिशाख्य में वैदिक ऋचाओं एवं शाखांतर्गत मंत्रों की उच्चारण-पद्धति बताई गयी है। इस ग्रंथ में आपने अनेक पूर्वाचार्यों का एवं व्याकरणकार व्याडी का उल्लेख किया है। व्याडी का काल ईसापूर्व 1100 वर्ष माना जाता है। शौनक के वे शिष्य थे। अतः शौनक का काल भी वही माना जाना चाहिये । उवट इन्हें "ऋषि" कहकर संबोधित करते हैं। श्यामकुमार टैगोर - ई. 20 वीं शती। "जर्मनीकाव्य" के कर्ता । श्यावाश्व अत्रिकुल के सबसे बड़े सूक्त द्रष्टा सम्वेद के पांचवें मंडल के बावन से इकसठ, इक्यासी, बयासी, आठवें मंडल के पैंतीस से अडतीस और नौवे मंडल का बत्तीसवां सूक्त आपकी रचना मानी जाती है। पिता का नाम अर्चनानस् एवं पुत्र का अंधीगू था। रथ्वीती दाऋषि की कन्या श्यावाश्व की पत्नी थी। श्यावाश्व के सूक्तों में मरुतों की प्रार्थना एवं सवितृ व इंद्र की स्तुति है। श्येन आग्नेय ऋग्वेद के दसवें मंडल के 188 वें सूक्त के द्रष्टा । इस लघुकाय सूक्त का विषय अग्नि की स्तुति है । यह सूक्त गायत्री छंद में है। श्वेतारण्य नारायण दीक्षित मूलतः कांची निवासी । फिर तंजौर के श्वेतारण्य में निवास काशी के बालूशास्त्री तथा विश्वनाथ शास्त्री से शिक्षा प्राप्त की। मद्रास के संस्कृत महाविद्यालय में प्रधान अध्यापक कृतियां मुकुटाभिषेक (नाटक), कुमारशतक, नक्षत्रमालिका (काव्य) तथा हरिश्चन्द्रादि सात गद्य-कथाएं । For Private and Personal Use Only Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir - श्वेताश्वतर एक आचार्य आपने स्वायंभुव ऋषि से ब्रह्मविद्या प्राप्त की थी। कृष्ण यजुर्वेद की एक शाखा आपके नाम पर है। इनके नाम का एक ब्राह्मण भी है, पर वह उपलब्ध नहीं । सुप्रसिद्ध श्वेताश्वतर उपनिषद् के प्रवक्ता आप ही हैं। श्रद्धा कामायनी एक सूक्त द्रष्ट्री। ऐसा लगता है कि यह नाम कल्पित होगा। ऋग्वेद के दसवें मंडल का इक्क्यावनवां सूक्त आपका माना जाता है। " श्रद्धासूक्त" के रूप में यह प्रसिद्ध है। श्रद्धा का माहात्म्य इसमें समझाया गया है। श्रद्धा, बुद्धि का प्रकार माना गया है बालक को प्रथम स्तनपान संस्कृत वाङ्मय कोश ग्रंथकार खण्ड / 475 -

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