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तथा "विद्यामन्दिर" नामक रूपकों के प्रणेता। सुतंभर आत्रेय - अत्रिकुल में जन्म। ऋग्वेद के पांचवे मंडल के 11 से 14 वें क्रमांकों के सूक्तों के द्रष्टा। इनके सूक्तों का विषय है-अग्निस्तुति। सुदर्शनपति - ई. 20 वीं शती। “सिंहल-विजय", "पादुकाविजय" तथा "सत्यचरितम्" नामक ऐतिहासिक नाटकों के प्रणेता। ये नाटक उत्कल की ऐतिहासिक घटनाओं पर आधारित हैं। आप जगन्नाथपुरी संस्कृत विद्यालय में अध्यापक थे। सुदर्शनसूरि - ई. 14 वीं शताब्दी का मध्यकाल। तामिलनाडु में जन्म। अपरनाम वेदव्यास । गुरु-वरदाचार्य। हारीत-कुल में उत्पन्न “वाग्-विजय" के पुत्र। द्रविड ब्राह्मण। रामानुजाचार्य के भागिनेय व शिष्य।
श्रीरामानुजाचार्य ने अपने दर्शन-ग्रंथों में भागवत के सिद्धान्तों का यथावसर उल्लेख किया है, परन्तु संप्रदायानुसारिणी टीका लिखने का प्रयास किया सुदर्शन सूरि ने। ये रामानुजाचार्य के दार्शनिक ग्रंथों के प्रौढ व्याख्याकार हैं। आपने, गुरु वरदाचार्य से श्रीभाष्य का अध्ययन कर, नितांत लोकप्रिय "श्रुति-प्रकाशिका'' टीका श्रीभाष्य पर निबद्ध की। इनकी भागवत-व्याख्या का नाम है- "शुकपक्षीय"। इनके मतानुसार यह टीका शुकदेवजी के विशिष्ट मत का प्रतिपादन करती है। अष्टटीकासंवलित भागवत के संस्करण में यह केवल दशम, एकादश एवं द्वादश स्कंधों पर ही उपलब्ध है।
कहा जाता है कि जब दिल्ली के बादशाह अलाउद्दीन खिलजी के सेनापति मलिक काफूर ने श्रीरङ्गम् पर 1367 ई. में आक्रमण किया था, तब उस युद्ध में ये मारे गये थे। फलतः इनका समय ई. 14 वीं शताब्दी का मध्यकाल (लगभग 1320 ई. 1367 ई.) है। सुधाकर शुक्ल - जन्मस्थान-क्योंटरा, जिला-इटावा, उत्तरप्रदेश। गुरु-पं. वनमालीलाल दीक्षित और पं. ललितप्रसाद । काव्यतीर्थ, साहित्याचार्य और एम.ए. की उपाधियां प्राप्त होने के पश्चात् दतिया (म.प्र.) में निवास किया। आपने गांधीसौगन्धिक (20 सर्ग) और भारतीस्वयंवर (12 सर्ग) नामक दो संस्कृत के महाकाव्यों के अतिरिक्त चन्द्रबाला नामक (20 सर्गों का) एक हिंदी महाकाव्य, देवदूतम् तथा केलिकलश नामक दो संस्कृत खंडकाव्य तथा किरनदूत और कसक नामक दो हिंदी खंडकाव्य लिखे हैं। "लवंगलता" नामक 10 अंकों का एक नाटक भी आपने लिखा है। आपके "गान्धीसौगन्धिकम्" महाकाव्य को अ.भा. संस्कृत साहित्य सम्मेलन द्वारा और कसक नामक हिंदी खंड काव्य को विन्ध्यप्रदेश शासन द्वारा पुरस्कृत किया गया है। सुधाकलश - राजशेखर के शिष्य। जैन पंडित। रचनासंगीतोपनिषद् (ई. 1323) और उसकी टीका (ई. 1349)। सुनाग - कात्यायन से उत्तरकालीन वैयाकरण। वार्तिकों के प्रवचनकर्ता। इन्होंने पाणिनीय धातुपाठ पर भी कोई व्याख्या
लिखी थी। सायणभाष्य में सौनाग-मत का निर्देश अनेक स्थानों पर किया गया है। सुपर्ण ताह्मपुत्र - एक सूक्त द्रष्टा। ऋग्वेद के 10 वें मंडल के 144 वें सूक्त की रचना आपने की है। इन्द्र इस सूक्त की देवता है। सुबन्धु - रचना-वासवदत्ता (गद्यकथा)। बाणभट्ट ने हर्षचरित के प्रारम्भ में कुछ ग्रंथ तथा उनके लेखकों का उल्लेख किया है, उनमें वासवदत्ता का समावेश है। वासवदत्ता में विक्रमादित्य की मृत्यु से काव्य सौन्दर्य-क्षति होने की बात लेखक ने कही है। भामह ने वासवदत्ता की कथावस्तु लोकशास्त्र-विरुद्ध होने की टीका की है। वासवदत्ता की कथा पूर्वकाल से रसिकों में प्रिय होने का संदर्भ पातंजल-महाभाष्य में भी मिलता है। वासवदत्ता पढने वाले, वहां 'वासवदत्तिक' बताए गए हैं पर सुबन्धु उसका लेखक होना असम्भव सा प्रतीत होता है। सुबन्धु (वासवदत्ता) का उल्लेख वामन के काव्यालंकार में मिलता है तथा बाण और भवभूति के शब्द-प्रयोगों का अनुकरण वासवदत्ता में पाया जाता है यह बात विवाद्य नहीं। इससे सुबन्धु, बाण भवभूति और भामह के बाद तथा वामन के पूर्व हुए होंगे यह अनुमान तर्कसंगत है। तदनुसार सुबंधु का समय ई. 8 वीं शती का उत्तरार्ध होना संभव है। सुब्बराम - ई. 20 वीं शती। "मेघोदय" नामक नाटक के रचयिता। ए.व्ही. सुब्रह्मण्य अय्यर - प्राचार्य आर.डी. संस्कृत महाविद्यालय मदुरै। रचना-पद्यपुष्पांजलिः (कुछ चुनी अंग्रेजी कविताओं का अनुवाद)। सुब्रह्मण्य शर्मा - ई. 20 वीं शती। "समीहित-समीक्षण" नामक प्रहसन के प्रणेता। सुब्रह्मण्य सूरि (प्रा.) - पिता-चौक्कनाथ अध्वरी। पुदुकोट्टा के राज कालेज में संस्कृत के प्राध्यापक (सन् 1894 से 1910 तक)। जन्म-ई. 18501 स्थान-कडायकडि। विविध शास्त्रों तथा कलाओं की निपुणता के कारण दक्षिण भारत में प्रसिद्ध व्यक्ति । रचनाएं- रामावतार, विश्वामित्रायाग, सीताकल्याण, रुक्मिणीकल्याण, विभूतिमाहात्म्य, हल्लीशमंजरी, दोलागीतानि, वल्लीबाहुलेय (नाटक), शन्तनुचरित, मन्मथमथन (भाण), 'बुद्धिसन्देश, हरतीर्थेश्वरस्तुति, शुकसूक्तिसुधारसायनम् आदि 18 ग्रंथ। इन्हें सामवेद कंठस्थ था, और ये साम-गायन तथा वक्तृत्व एवं चित्रकला में निपुण थे। सुभूतिचन्द्र - ई.स. 1062 से 1172 के मध्य । बंगालनिवासी। संभवतः मगध के आनन्दगर्भ के उत्तराधिकारी । कृतियां-कामधेनु (अमरकोश की टीका) और नामलिंगानुशासन। सुमति - सन्मतिसूत्र के टीकाकार। तत्त्वसंग्रह में प्रत्यक्ष-लक्षण-समीक्षा के संदर्भ में शान्तरक्षित तथा उनके
486 / मम्कत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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