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प्राध्यापक के रूप में सेवानिवृत्त । सेवानिवृत्ति के पश्चात् हगली का प्रचार किया। में निवास। अभिनय में रुचि। बंगला और संस्कृत के कई ____ आवश्यक प्रमाणों के अभाव में विष्णुस्वामी के देश और नाटकों में अभिनय। कलकत्ता आकाशवाणी से कई रचनाएं काल की निश्चिति अभी तक नहीं हो पाई। वैष्णव-संप्रदाय प्रसारित।
में प्रसिद्धि है कि विष्णुस्वामी द्रविड प्रदेश के किसी क्षत्रिय कृतियां - वनवेणु (गीतिकाव्य), मणिमालिका (कथा), राजा के ब्राह्मण-मंत्री के सुपुत्र थे। वाल्य-काल से ही इनकी काव्यकुसुमांजलि तथा गंगासुर-तरंगिणी (खण्डकाव्य) तथा 15 प्रवृत्ति अध्यात्म की ओर उन्मुख थी। इन्होंने उपनिषदों का नाटक : दस्यु-रत्नाकर, भरत-मेलन, वाल्मीकि-संवर्धन, केवल पारायण ही नहीं किया था अपि तु उनमें वर्णित तथ्यों चाणक्यविजय, प्रबुद्ध-हिमाचल, विष्णुमाया, राजर्षि-भरत, को अपने व्यावहारिक जीवन में कार्यान्वित करने की उनमें उमा-तपस्विनी, ओंकारनाथ-मंगल, द्वारावती, मातृपूजन, दृढ अभिलाषा थी। अंतर्यामी परमात्मा का साक्षात्कार करने उत्तर-कुरुक्षेत्र, राजर्षि सुरथ, काशी-कोशलेश, अरुणाचल-केतन । की उनके हृदय में तीव्र इच्छा थी। उपनिषद् धर्म के अनुसार इनमें से दस्युरत्नाकर तथा भरत-मेलन की रचना में ध्यानेश उपासना के सफल न होने पर उन्होंने अन्न-जल-ग्रहण करना नारायण चक्रवर्ती से सहयोग प्राप्त । बंगला कृतियां- पद्मपुट बंद कर दिया। सातवें दिन उनका हृदय दिव्य ज्योति से भर और पुष्पराग।
उठा। उन्हें किशोर मूर्ति श्री श्यामसुंदर के दिव्य दर्शन हुए। विश्वेश्वर सूरि - समय- ई. 17 वीं शती। अष्टाध्यायी पर पश्चात् बालकृष्ण ने स्वयं उपदेश दिया कि मेरी प्राप्ति का "व्याकरण-सिद्धान्त-सुधानिधि" नामक विस्तत व्याख्या के लेखक।। सर्वाधिक सुलभ उपाय है भक्ति । आदि के तीन अध्याय उपलब्ध। पिता-लक्ष्मीधर। केवल इस प्रकार विष्णु स्वामी की उपासना फलवती हुई। उन्होंने 32-34 वर्ष की आयु में मृत्यु। अन्य रचनाएं- तर्ककौतूहल, भगवान् श्रीकृष्ण की बालमूर्ति का निर्माण करा कर उसकी अलंकार-कौस्तुभ, रुक्मिणी-परिणय, आर्यासप्तशती, प्रतिष्ठापना की और अपने अनुयायियों को भक्ति की विमलसाधना अलंकारकुलप्रदीप और रसमंजरी टीका।
का उपदेश दिया। इस मत के सात सौ आचायों की बात विष्णुदत्त शुक्ल "वियोगी" - जन्म 1895 ई. में। इन्होंने सुनी जाती है, जिनमें आचार्य बिल्वमंगल एक महान् उपदेशक "गंगा" व "सौलोचनीय" नामक दो काव्य ग्रंथ लिखे हैं। हुए। जिस समय वल्लभाचार्य उपदेश की कामना से साशंक-चित्त "गंगा' 5 सौ में रचित खण्डकाव्य है। "सौलोचनीय" का हो रहे थे, तब आचार्य बिल्व मंगल ने उन्हें विष्णुस्वामी की प्रकाशन 1958 ई. में वाणी-प्रकाशन, 21/1, कस्तूरबा गांधी शरण में जाने का उपदेश दिया था। मा: कमपुर से हुआ है। इसमें रावण-पुत्र मेघनाद की पत्नी विष्णुस्वामी के संप्रदाय में त्रिलोचन, नामदेव तथा ज्ञानदेव सुलोच का वृत्त वर्णित है। इसमें इन्होंने आधुनिक शैली (संत ज्ञानेश्वर) आदि विख्यात संतों की गणना नाभादास ने का अनुगमन किया है।
की है तथा आचार्य वल्लभ ने इसी मार्ग का अनुसरण कर विष्णुदास कवि - समय- ई. 15 वीं शती। "मनोदूत" अपना शुद्धाद्वैतमूलक पुष्टिमार्ग चलाया। यह कथन ऐतिहासिक नामक संदेश-काव्य के रचयिता। ये चैतन्य महाप्रभु के मातुल । दृष्टि से विचारणीय है। कुछ विद्वान्, वेद-भाष्य के कर्ता कहे जाते हैं। विषय व भाषा की दृष्टि से इनका "मनोदूत" आचार्य सायण तथा माधवाचार्य के विद्या-गुरु विद्याशंकर को काव्य एक उत्कृष्ट कृति के रूप में समादृत है। विष्णुदास ही विष्णुस्वामी मानते हैं किन्तु सायणाचार्य का समय, चतुर्दश की दूसरी कृति है : “कवि-कौतूहल" जो काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है। शतक का मध्य भाग है। अतः उनके गुरु का समय, 14 विष्णुपद भट्टाचार्य - बंगाल के भट्टपल्ली, (भाटपाडा),
वें शतक का आरंभ-काल अथवा 13 वें शतक का अंतिम जिला चौबीस परगना के निवासी। म.म. राखालदास न्यायरत्न
काल हो सकता है। विद्याशंकर तथा विष्णुस्वामी की अभिन्नता, के पोते। पिता-हरिचरण विद्यारत्न । कृतियां- कांचुकुंचिक,
प्रमाणों से पुष्ट नहीं की जा सकती। अनुकूल-गलहस्तक, धनंजय-पुरंजय, मणिकांचन समन्वय आदि विष्णु स्वामी का काल-निर्णय करते समय डा.रामकृष्ण कतिपय रूपक। मृत्यु - फरवरी 1964 में।
भांडारकर ने नाभाजी के एक छप्पय के आधार पर, उसे 13 विष्णुमित्र - व्याकरण महाभाष्य पर क्षीरोदक नामक टिप्पणी
__ वें शतक का आरंभकाल माना है। के लेखक। यह टिप्पणी अप्राप्य है।
भारत के धार्मिक इतिहास में अतीव महत्त्वपूर्ण भूमिका के विष्णुशास्त्री - भारत की विख्यात धनी विष्णुखामी के व्यक्तित्व, देश और काल की समस्या को 'वैष्णव-संप्रदाय- चतुष्टयी' में, वल्लभ संप्रदाय, रुद्र-संप्रदाय सुलझाने के अभिप्राय से कुछ विद्वानों ने एकाधिक विष्णु के नाम से विख्यात है। इस संप्रदा। के मुख्य प्रवर्तक थे स्वामी होने की कल्पना की है, कतिपय आलोचकों की सम्मति विष्णुस्वामी, तथा इसके मध्ययुगी प्रतिनिधि थेग गर्य वल्लभ, में कम-से-कम तीन विष्णुस्वामी का उल्लेख मिलता है- (1) जिन्होंने विष्णुस्वामी की गद्दी पर आरूढ होकर उनके सिद्धांत देवतनु विष्णुस्वामी (300 ई.पू.) जो मथुरा में रहते थे। पिता
456 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड
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