Book Title: Sanskrit Vangamay Kosh Part 01
Author(s): Shreedhar Bhaskar Varneakr
Publisher: Bharatiya Bhasha Parishad

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Page 442
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir में उत्तीर्ण । सन् 1972 में सागर वि.वि. से "संस्कृत कवियों के व्यक्तित्व का विकास' शीर्षक शोधप्रबंध पर पीएच.डी. । सागर वि.वि. में संस्कृत विभागप्रमुख। कृतियां- महाकविः कण्टक- (आख्यायिका), प्रेम-पीयूष (नाटक), संस्कृत : निबंधकालिका तथा भारती । “दिव्य-ज्योति" व "संस्कृत-प्रतिभा" में प्रकाशित कतिपय कहानियाँ एवं कविताएं। हिन्दी कृतियां-भारतीय धर्म तथा संस्कृति आदि कतिपय ग्रंथ। रानडे, विश्वनाथभट्ट- ई. 17 वीं शती। मूलतः कोंकण-निवासी। बाद में काशी में प्रतिष्ठित । पिता-महादेवभट्ट रानडे। पितामहविष्णुभट्ट रानडे। गुरु-कमलाकरभट्ट तथा ढुण्डिराज। रचनाएंशम्भुविलास (काव्य) और शृंगारवापिका (नाटिका)। रामकवि - ई. 16 वीं शती। बंगाल के निवासी। गोत्रकाश्यप। पिता-रामकृष्ण। "शृंगार-रसोदय" नामक काव्य के कर्ता। रामकिशोर चक्रवर्ती - बंगाल-निवासी। “अष्टमंगला" (कातन्त्रवृत्ति की टीका) के कर्ता। रामकिशोर मिश्र - जन्म सन् 1939 में एटा (उ.प्र.) जिले में। मेरठ वि.वि. के अन्तर्गत प्राध्यापक। पिता- होतीलाल । माता- कलावती। "अंगुष्ठ-दान" तथा "धुव" नामक लघु नाटकों के रचयिता। रामकुबेर मालवीय - ई. 20 वीं शती। मृत्यु सन् 1973 में। काशी वि.वि. के साहित्याचार्य। वहीं पर अध्यापक। अन्तिम दिनों में काशी के संस्कृत वि.वि. में साहित्य के प्राध्यापक तथा विभागाध्यक्ष । “तीर्थयात्रा" नामक प्रहसन के प्रणेता। रामकैलाश पाण्डेय - ई. 20 वीं शती। एडिया के निकट प्रयाग जिले के निवासी। प्रयाग वि.वि. से एम्.ए. । कृतियांप्रबुद्धभारत (नाटक), भारतशतक (काव्य) तथा अनेक संस्कृत निबन्ध। रामकृष्ण - समय- ई. 18 वीं शती। वत्सगोत्रीय । पिता-तिरुमल। गुरु- रमणेन्द्र सरस्वती। पितामह-वेंकटाद्रि भट्टारक। "उत्तरचरित" नाटक के प्रणेता। उपनाम "भवभूति"। अन्य रचना- रत्नाकर (सिद्धान्त कौमुदी की टीका)। रामकृष्ण कादम्ब - समय- ई. 19 वीं शती । गोदावरी तटवासी। रचनाएं- अदितिकुण्डलाहरण तथा कुशलवचरित (नाटक), नृसिंह-विजय (काव्य), चित्रशतक, रामावयव-मंजरी, नैषध-चरित-टीका, चम्पू-भारत-टीका, श्रीमद्-भागवततात्पर्य-मंजरी और दत्तकोल्लास (धर्मशास्त्रविषयक)। रामकृष्ण चक्रवर्ती - ई. 16 वीं शती के एक श्रेष्ठ नैयायिक। काशी के बंगाली पंडितों में इन्हें जगद्गुरु, महामहोपाध्याय, भट्टाचार्य के रूप में सम्मान प्राप्त था। अनेक पंडितों के अनुसार दीधितिकार रघुनाथ शिरोमणि इनके साक्षात् गुरु थे। आपने चिंतामणिदीधितिटीका, गुणदीधितिप्रकाश, लीलावतीदीधितिटीका, पदार्थखंडन-टीका व आत्मतत्त्वविवेक-दीधितिटीका आदि ग्रंथों की रचना की है। रामकृष्ण भट्ट - (1) ई. 16 वीं शती के एक मीमांसक। आपकाशी-निवासी पाराशर गोत्री ब्राह्मण थे। आपने अनेक ग्रंथों की रचना की जिनमें पार्थसारथी मिश्र की शास्त्रदीपिका पर "युक्तिस्नेहप्रपूरणी" नामक व्याख्या तथा "प्रतापमार्तण्ड' नामक ग्रंथ महत्त्वपूर्ण हैं। इस ग्रंथ के कारण इन्हें "पंडितशिरोमणि' की उपाधि से विभूषित किया गया। (2) ई. 16 वीं शती। काशी के भट्ट-परिवार के एक धर्मशास्त्री। पिता-नारायण भट्ट आपने जीवात्पितृकर्मनिर्णय, ज्योतिष्टोमपद्धति, विभागतत्त्व, मासिक-श्राद्धनिर्णय, तंत्रवार्तिकटीका आदि ग्रंथ लिखे हैं। 52 वर्ष की आयु में मृत्यु। पत्नी उमा सती हो गई । निर्णय-सिन्धुकार कमलाकर भट्ट इनके पुत्र थे। रामकृष्ण भट्ट- पुष्टिमार्ग (वल्लभ-संप्रदाय) की मान्यता के अनुसार भागवत की महापुराणता सिद्ध करने हेतु लिखे गए "श्रीमद्भागवत-विजयवाद" नामक लघुकाय-ग्रंथ के लेखक । आपका यह ग्रंथ, इसी प्रकार के पूर्वरी पांच ग्रंथों की अपेक्षा एवं युक्ति के उपन्यास में श्रेष्ठ तथा प्रमेय-बहुल है। इससे आपके द्वारा किये गये पुराणों के गंभीर मंथन तथा अनुशीलन का परिचय मिलता है। ग्रंथ की पुष्पिका से विदित होता है कि आप वल्लभाचार्य के वंशज थे। रामकृष्ण भट्टाचार्य - ई. 16 वीं शती। बंगाली ब्राह्मण । कृति- नामलिंगाख्या कौमुदी।। रामकृष्ण भट्टाचार्य चक्रवर्ती - ई. 17 वीं शती। पितारघुनाथ शिरोमणि । रचनाएं- गुणशिरोमणिप्रकाश और न्यायदीपिका। रामगोपाल- नदिया नरेश कृष्णचन्द्र (ई. 18 वीं शती) का समाश्रय प्राप्त। रचनाएं- काकदूत और कीरदूत। रामचन्द्र - सम्भवतः ई. 18 वीं शती। बंगाल-नरेश चन्द्र के समाश्रित। पिता-श्रीहर्ष। “देवानन्द" (नाटक) के प्रणेता। रामचंद्र (प्रबंध शतकर्ता) - हेमचंद्राचार्य के शिष्य । आश्रयदाता- गुजरात के तीन अधिपति-सिद्धराज, कुमारपाल एवं अजयपाल। कई नाटकों के रचयिता तथा प्रसिद्ध नाट्यशास्त्रीय ग्रंथ "नाट्य-दर्पण" के प्रणेता, जिसे इन्होंने गुणचंद्र की सहायता से लिखा है। गुजरात के निवासी। समय- ई. 12 वीं शती। इनके सभी ग्रंथ प्राप्त नहीं होते, पर छोटे छोटे प्रबंधों को मिलाकर लगभग 30 ग्रंथ उपलब्ध हो चुके है। इनके नाटकों की संख्या 11 है जिनके उद्धरण नाट्यदर्पण में मिलते हैं। "नल-विलास" व "सत्य-हरिश्चंद्र" प्रकाशित हो चुके हैं। यादवाभ्युदय, राघवाभ्युदय तथा रघुविलास नामक 3 ग्रंथ अप्रकाशित हैं। इनके उद्धरण "नाट्यदर्पण" में प्राप्त होते है। इन्होंने 3 प्रकरणों की भी रचना की है जिनमें से "कौमुदी-मित्रानंद" का प्रकाशन हो चुका है। "रोहिणी-मृगांक-प्रकरण" व 426 / संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड For Private and Personal Use Only

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