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है। इनका 'न्याय-तत्त्व' नामक ग्रंथ विशिष्टाद्वैत संप्रदाय का प्रथम मान्य ग्रंथ माना जाता है। इस ग्रंथ में इस मत की दार्शनिक दृष्टि का विवेचन किया है।
नाथमुनि श्रीरंगम् की आचार्य-गद्दी पर आरूढ थे। इनके पौत्र यामुनाचार्य, इन्हीं के समान अध्यात्म-निष्णात विद्वान् थे किन्तु उनकी प्रवृत्ति राजसी वैभव में ही दिन बिताने की होने से नाथमुनि के पश्चात् आचार्य -पद पर पुंडरीकाक्ष तथा राममिश्र आरूढ हुए थे। रंगनाथ यज्वा - समय- वि. 18 वीं शती का मध्य । मंजरीमकरन्द (पदमंजरी की टीका) के लेखक । अनेक हस्तलेख उपलब्ध। अड्यार के हस्तलेख में इनका नाम परिमल लिखा है। नल्ला दीक्षित के पौत्र, नारायण दीक्षित के पुत्र। इनका वंश श्रौत यज्ञों के अनुष्ठान के लिये प्रसिद्ध । चौल देश के करण्डमाणिक्य ग्राम के निवासी। इन्होंने सिद्धान्त कौमुदी पर पूर्णिमा नामक व्याख्या थी लिखी है। रंगनाथाचार्य - तिरुपति निवासी। कृष्णम्माचार्य के पिता।। रचनाएं- सुभाषितशतकम्, शृंगारनायिकातिलकम्, पादुकासहस्रावतार- कथासंग्रहः, गोदाचूर्णिका, रहस्यत्रयसाररत्नावली, सन्मतिकल्पलता, अलंकारसंग्रहः । रंगाचार्य - समय- ई. 20 वीं शती। प्रसिद्ध देशभक्त । 'शिवाजीविजय'तथा 'हर्ष-बाणभट्टीय' नामक नाटकों के प्रणेता। रघुदेव न्यायालंकार - ई. 17 वीं शती। रचनाएं- तत्त्वचिंतामणि-गूढार्थदीपिका, नवीननिर्माणम् दीधितिटीका, न्यायकुसुमकारिका- व्याख्या, द्रव्यसारसंग्रह और पदार्थ-खण्डन व्याख्या। रघुनंदन - पिता- वंद्यघटीय ब्राह्मण हरिहर भट्टाचार्य। समय1490 से 1570 ई. के बीच। इन्हें बंगाल का अंतिम धर्मशास्त्रकार माना जाता है। इन्होंने 'स्मृतितत्त्व' नामक बृहत् ग्रंथ की रचना की है। यह ग्रंथ धर्मशास्त्र का विश्वकोश माना जाता है। इसमें 300 ग्रंथों व लेखकों के उल्लेख हैं। 'स्मृतितत्त्व' 28 तत्त्वों वाला है। इसके अतिरिक्त इन्होंने 'तीर्थतत्त्व', 'द्वादशयात्रा-तत्त्व', 'त्रिपुष्करशांतितत्त्व,' 'गया-श्राद्ध-पद्धति', 'रासयात्रा-पद्धति' आदि ग्रंथों की भी रचना की है। कहा जाता है कि रघुनंदन व चैतन्य महाप्रभु दोनों के गुरु वासुदेव सार्वभौम थे। इन्होंने दायभाग पर भाष्य की भी रचना की है। रघुनन्द गोस्वामी - समय- ई. 18 वीं शती। बरद्वान-निवासी। स्तव-कदम्ब, कृष्णकेलि- सुधाकर, उद्धवचरित, गौरांगचम्पू आदि काव्य-ग्रंथों के रचयिता। रघुनाथ नायक- विद्वान् व कलाभिज्ञ नायकवंशीय तंजौर-नरेश। इन्होंने 'रामायणसार-संग्रह' के अतिरिक्त पारिजात-हरण, अच्युतेन्द्राभ्युदय, गजेन्द्रमोक्ष, यक्षगान तथा रुक्मिणीकृष्णविवाह का भी प्रणयन किया है। 'संगीत-सुधा' तथा 'भारत-सुधा'
नामक रचनाएं भी इनके नाम पर चलती हैं किंतु उनका लेखक गोविंद दीक्षित माने जाते हैं।
रामायण विषयक इनके तेलगु ग्रंथ का संस्कृत अनुवाद मधुरवाणी ने किया, जो राजसभा की सदस्या थीं। रघुनाथ के जीवन पर अनेक कवियों ने काव्य-रचना की है। इनकी पत्नी रामभद्रांबा भी श्रेष्ठ कवयित्री थी जिसने रघुनाथाऽभ्युदय नामक महाकाव्य में अपने पति का चरित्र वर्णन किया है। रघुनाथ - रचना- 'वादिराज- वृत्त-रत्न-संग्रहः'। इस काव्य में विजयनगर साम्राज्य के अंतिम दिनों में हए कर्नाटकीय महाकवि वादिराज का चरित्र वर्णन है। वादिराज ने अनेक काव्य लिखे हैं। वे सब मुद्रित हैं। रघुनाथ - समय- अनुमानतः 1626-1678 ई.। मेवाडी कवि। आप महाराजा जगत्सिंह के समकालीन थे। इनकी एकमात्र कृति है- जगत्सिंहकाव्यम्। इसमें महाराणा का जीवनचरित वर्णित है। रघुनाथ- ई. 17 वीं शती। सामन्तसार (बंगाल) के निवासी। पिता- गौरीकान्त। 'कृष्णवल्लभ' से समाश्रय प्राप्त । कृति-त्रिकाण्ड-चिन्तामणि (अमरकोश की वृत्ति)। रघुनाथदास - ई. 15 वीं शती। चैतन्य-परम्परा के छः प्रमुख गोस्वामियों में से एक। सप्तग्राम के जमींदार-कुल में जन्म। कृतियां- दानकेलि-चिन्तामणि (लघु काव्य) मुक्ताचरित (चम्पू) तथा स्तवावलि। रघुनाथदास - रचना- हंसदूतम् (ई. 17 वीं शती)। रघुनाथ नायक - तंजौर के एक विद्वान । इनका 'वाल्मीकिचरित' (वाल्मीकि के चरित्र पर आधारित एकमेव काव्य) संस्कृत साहित्य में विद्यमान है। रघनाथशास्त्री-समय-ई.19 वीं शती । रचना- गादाधरीपंचवादटीका। रघुनाथ शिरोमणि - ई. 14 वीं शती। नवद्वीप के सर्वश्रेष्ठ नव्य नैयायिक। वासुदेव सार्वभौम व पक्षधरमिश्र के पास इन्होंने अध्ययन किया था। इन्होंने तत्त्वचिंतामणि' पर 'दीधिति' नामक टीका लिखी। इस टीका में इन्होंने अनेक सिद्धांतों का युक्तिपूर्व खंडन करते हुए अपने नवीन सिद्धांत प्रस्थापित किये हैं। मूल ग्रंथ के साथ ही, आगे चलकर यह टीका भी पांडित्य की कसौटी सिद्ध हुई। यह टीका, मौलिक विचारों एवं तार्किक प्रतिभा का अपूर्व संगम है। रघुनाथ की इस अद्वितीय तार्किक बुद्धि के कारण उन्हें, 'शिरोमणि' की पदवी प्राप्त हुई थी।
अन्य रचनाएं . बौद्ध-धिक्कार-शिरोमणि, पदार्थ-तत्त्व-निरूपण,
किरणावली-प्रकाश-दीधितिः, न्यायलीलावती-प्रकाश-दीधिति, अवच्छेदकत्वनिरुक्तिः, खण्डन-खण्डखाद्य दीधिति, आख्यातवाद और नवाद । रघुनाथसूरि . पाकशास्त्र विषयक संकलित जानकारी प्रस्तुत
संस्कृत वाङ्मय कोश - ग्रंथकार खण्ड / 421
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